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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी3D - नशा उतर गया. मैंने कहा घर में रहो, मकान में रहो, झोपड़ी में रहो. जरा हृदय के अन्दर यह विचार करके चलना कि मुझे कल जाना है. जवानी के जोश के अन्दर यदि पाकेट गर्म हो जाए. यदि दिमाग के अन्दर नशा चढ़ जाए कि मैं कुछ हूं तो एक कवि ने कहा है: उछल लो कूद लो जब तक है ज़ोर नलियों में. याद रखना इस तन की उड़ेगी खाक गलियों में ॥ विचार कर लेना. उछल लो, कूद लो, जो मर्जी में आए बोल लो. इस तन की खाक गलियों में उड़ेगी. जला देंगे. अस्तित्व नहीं रहेगा. बड़ी शान-शौकत से हम जाते थे, यह खोपड़ी हमेशा ऊंची रहती थी. कहां गया तुम्हारा ऐशोआराम? वह शान-शौकत. वह नवाबी, वह रईसी कहां गई? देखा सब साफ. बहुत विचार करके चलना. जो पूर्व के पुण्य से मिला है, उसका सही उपयोग करना. कुमारपाल सम्राट के समय ऐसे कई प्रसंग आए. वस्तुपाल, तेजपाल संघ लेकर के जा रहे थे. इस रूपक के द्वारा “लोकापवाद भीरुत्वं" ऐसे कार्य में कभी रस नहीं लेना, जिसमें लोगों की रुचि न हो, प्रसन्नता न हो, वह चाहे कितना भी सुन्दर कार्य होगा असुन्दर बन जाएगा एवं इस पर दोनों पर चिन्तन हो जाएगाः वस्तुपाल, तेजपाल महामन्त्री थे. पैसे की कोई कमी नहीं. अपने जीवन में तीन अरब सोना मोहर से ऊपर तो दान-पुण्य कर के गए. पर्युषण में उनका जीवन प्रसंग आप को मालूम पड़ेगा. क्या-क्या कार्य किया. अचानक बहुत बड़ा पैदल संघ लेकर के शत्रुजय जा रहे थे, जिसे हमारे यहां शाश्वत तीर्थ माना जाता है, जिसका अपना एक स्वतन्त्र इतिहास है, जिसमें लोगों की भावना का बड़ा योगदान है, उनकी भावना की अभिव्यक्ति अपूर्व साहित्य के रूप में विकसित हुई, धनेश्वर सूरि जी जैसे महारचयिता ने भी “शत्रुजय माहात्म्य" नामक काव्य की रचना की। संघ लेकर के निकले. राजस्थान के सांचौर में उन्होंने मुकाम किया. संयोग आधे राजस्थान में पूर्ण सुकाल था. बहुत सुन्दर वृष्टि थी. लोग बड़े प्रसन्न थे. किसी तरह की कोई समस्या न थी, वे सांचोर में गए और वहां की स्थिति देखी. दर्भिक्ष था. लगातार दो वर्षों से अकाल की स्थिति थी, लोग तंग आ गए थे. महाजन कर्जदार हो गए. पैसे से खाली हो गए. वसूली नहीं हुई लोगों के पास खाने का अनाज नहीं. महामन्त्री के आदमी जो संघ यात्रा में थे वहां पर ठहरे. पहले ट्रेन तो थी नहीं. तो वही थी व्यवस्था. सामुदायिक यात्रा होती. वहां दुष्काल की परिस्थिति थी. महामन्त्री ने सांचोर संघ को स्वयं के यहां आमंत्रित किया, लेकिन वहां के संघ ने उनके इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया. ह य मा 155 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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