SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी कई व्यक्ति मुझसे पूछते हैं कि इस गलत चीज़ को आप क्यों प्रोत्साहन देते हैं. मैंने कहा- “एज ए रिहर्सल" - वह दान देने की प्रेक्टिस (अभ्यास) कर रहा है. अगर आप बिल्कुल ही बन्द करा दोगे तो उसकी भावना ही मर जाएगी. वह देता तो है. देते-देते उसमें संस्कार आएगा. मेरे शब्द की चोट कभी न कभी उसको जागृत करेगी और कभी यह भावना आ जाएगी कि यह देने का तरीका गलत है, मैं ऐसे दूं कि मुझे भी मालूम न पड़े – “फार गिव एण्ड फारगेट" दूं और उसे भूल जाऊं, याद न आए. दे कर के यदि याद आता है, अभिमान आता है कि मैंने दिया तो वह अहंकार सारे पुण्य की खेती को खा जाएगा. देकर के यदि नम्रता आ जाए, व्यक्ति स्वयं को धन्यवाद दे - मैं पुण्यशाली हूं, मेरे द्वारा यह सुकृत कार्य हुआ तो उस कार्य में आनन्द आएगा. उस कार्य में आत्मा को प्रसन्नता मिलेगी, आत्मसंतोष मिलेगा. देने का यह तरीका होना चाहिए. इस शब्द पर आप ध्यान देना - "दीनाभ्युध्दरणादरः" ऐसे दीन व्यक्ति, जो कर्म संयोग से निर्धन बन जाएं, परिस्थिति से लाचार बन जाएं, मजबूर हो जाएं, परिवार-सम्पन्न न हों, स्थिति संपन्न न हो और प्रतिष्ठित हों ऐसी परिस्थिति में कई बार ऐसी दुर्घटनाएं हो जाती हैं, विवशता व्यक्ति को मौत की तरफ ले जाती है, ऐसी परिस्थिति में उन आत्माओं को सहयोग देना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है. जैन परम्परा में इसको बड़ा महत्त्व दिया गया है. "साधर्म्यवच्छलन्तु बहुलाभं" ऐसे सहधार्मिक जनों की भक्ति करना, असीम पुण्य का कारण माना है. पर्युषण पर्व आएगा - उस समय पर इसका विवेचन चलेगा. उसी पर्युषण, पर्व में महावीर परमात्मा का कथन है: “एगत्थ सव्वधम्मा इंएगत्थ साहम्मिआण वच्छल एक तरफ सारी दुनियाभर की धर्म क्रिया करिए, तप करिए - दूसरी तरफ यदि शुद्ध भाव से ऐसे सधार्मिक बन्धुओं की, ऐसी दीन आत्माओं की आप सेवा करते हैं तो सब धर्म एक तरफ और यह सेवा धर्म एक तरफ, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता. इतना मूल्य इस को दिया गया, इतना आदर इस धर्म को दिया गया. परोपकार, तो हृदय की अनुकंपा है, हृदय की दयालुता है, हृदय की करुणा है. इसी आधारशिला पर सम्यक्-दर्शन आधारित है. सम्यक्-श्रद्धा का आधार है. परमात्मा के प्रेम को पाने का सबसे सरल तरीका है. उनकी आज्ञा का यथावत् पालन है. उनका आदेश है:- परोपकारी बनो. जहां तक पैसा पाकेट में है, वह पाप माना गया परन्त जैसे ही पाकेट से परोपकार में गया; तो वह तुरन्त ही रूपान्तरित होता है, पुण्य बनता है, फिल्टर हो जाता है. परोपकार में जाए, तब यह गटर का जल भी गुलाबजल बनता जाएगा, नहीं तो दुर्गन्ध देगा, अभिमान 144 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy