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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी कार्य है, परोपकार का कार्य है. कितनी दीन-दुःखी आत्माओं के हृदय से मुझे आशीर्वाद मिलेगा और ऐसे सुन्दर परोपकार का सुअवसर मुझे कब मिलेगा. सब कुछ जा कर मैं अर्पण कर दूं. कहां तो ऐसी मंगल भावना और कहां आज हमारी वर्तमान स्थिति. कैसी स्थिति में हम खड़े हैं. विचार करिए. कभी ऐसा विचार आता है? दो रुपये भी किसी आत्मा को दें. मैं इतना कमाता हूं, इतना प्रतिशत मेरा परोपकार में जाएगा, शुभ कार्य में जाएगा. सारा जीवन इसी में पूर । हो जाता है. होटलों में निकल जाता है अस्पतालों में मर जाता है. देख कर के दया आती है अन्तिम समय चेहरे पर उदासीनता मिलती हैं. कुछ भी नहीं हुआ. जो हाथ परोपकार के लिए मिला था, उसका उपयोग जगत् प्राप्ति के लिए इकट्ठा करने में हुआ. मरते समय हाथ खाली करके चला जाता है. यह विचारणीय प्रश्न है. सेठ मफतलाल किसी गांव से दिल्ली में आए थे. यहां पर तकदीर आजमाई, भाग्योदय हुआ. लाखों की सम्पत्ति उन्होंने कमाई. दो-तीन लड़के थे, बड़े होशियार. मरते समय उन्होंने पूछा कि बड़ा बच्चा कहां गया. कहा कि वह आपकी सेवा कर रहा है, आपके माथे पर पंखा कर रहा है. बोले मंझला लड़का कहां है. कहा कि आपका पांव दाब रहा है. पूछा कि छोटा लड़का कहां है. कहा कि वह आपके लिए दवा लाने गया है. महामूर्यो! दुकान पर कौन गया? दिवाला निकल जायेगा. यह हालत थी मफतलाल सेठ की. तीनों लड़के सेवा में हाजिर मर रहा हूं, इसकी चिन्ता नहीं, दुकान की चिन्ता. मरते-मरते भी दुकान की ही चिन्ता. मफतलाल गांव में गये. छोटा गांव था, व्यापार के लिए बड़े शहर में आकर बसे थे. यहां से कमाई होता वहां चले जाते. उम्र अस्सी वर्ष के ऊपर हुई. शरीर से बूढ़े हो गए पर मन से बड़े जवान थे. जैसे ही गांव में पहुंचे और वहां लेन-देन की कोई तकरार हुई. अचानक हादसा लगा बीमार हुए, पक्षाघात (या लकवा) हो गया. गांव वाले थे, उनके घर पर ले गए और चौक पर रख दिया. गर्मी के दिन थे, चौगान में उनका माचा रख दिया. आस-पास के लोग दयालु थे. दवा ले आये. घर ले आए, सेवा की. टेलीफोन किया. तीनों बच्चे दौड कर के भागे, सेवा के निमित्त नहीं, वे तो जानते थे कि जो आया है वह तो निश्चित जाएगा परन्तु अब यह उम्र – पक्षाघात हो गया, अटैक, या हैम्ब्रेज हो गया और कहीं मर गए तो वह चौपड़ा कहां रखा है, इनको कुछ मालूम नहीं कि वह रखा कहां है. उनके पेट में कहीं चला गया तो पैसा डूब जाएगा. इस भावना से तीनों इकट्ठे होकर टैक्सी लेकर के गये, ऐसा वैराग्य था इनके अन्दर कि बाप तो आए है, मरेंगे ही. जैसे बाप में था, वैसा बेटों में संस्कार आया. वहां टैक्सी लेकर के दौड़े कि जल्दी से जल्दी जाएं, मरने से पहले जानकारी तो मिल जाए. वहां गए देखा तो पक्षाघात. जुबान अटक गई, बोला जाता ही नहीं. तीनों बच्चे हैरान हो गए. उपाय करना है, नहीं तो गजब हो जाएगा. थोड़ी देर में देखा तो बाप बेचारा दरवाजे - 138 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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