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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: उन्होंने कहा कि राजन्! कभी मेरे साथ चलो आपकी प्रजा में कितनी गरीबी है, प्रजा में कैसी दीनता है, कैसी परिस्थिति है, उसका ज़रा मैं आपको परिचय कराऊं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरा एक साधक, घर की परिस्थिति से लाचार, परन्तु प्रेम से लाकर उसने यह वस्त्र मुझे दिया. प्रेम का कभी भी भौतिक दृष्टि से मूल्यांकन नहीं होता, वह अमूल्य होता है, उसने लाकर बड़े प्रेम से मुझे यह चीज़ भेंट की और मैंने स्वीकार कर लिया परन्तु इस कपड़े से तुम्हें यह जानकारी मिलनी चाहिए कि इस तुम्हारे राज्य के अन्दर कैसे निर्धन और गरीब व्यक्ति रहते हैं. मेरी चिन्ता छोड़ कर तुम उनका विचार करो कि तुम्हारा क्या कर्त्तव्य है ? इतने बड़े साम्राज्य के तुम मालिक बनो परन्तु उन व्यक्तियों के लिए कभी तुमने विचार किया ? इस कपड़े से यही सन्देश देने आया हूं कि तेरे राज्य में ऐसी प्रजा है कि जिनके पास पहनने के लिए भी दूसरा वस्त्र नहीं था और मुझे प्रेम से ऐसी परिस्थिति में भी मुझे अपने वस्त्र अर्पण किया. प्रेम अमूल्य है. इसीलिए मैं इसे अस्वीकार नहीं कर सका कि यदि ये वस्त्र भी मैं ले जाऊंगा तो इनके पास और भी वस्त्रों का अभाव हो जाए. मैंने इसे स्वीकार किया कि ऐसी परिस्थिति में यदि मैं स्वीकार नहीं करूँगा तो इनके दिल में पीड़ा होगी. गुजराती के कवि ने बड़ी सुन्दर भावना आचार्य भगवन्त के सन्दर्भ में कहा तुझ जेहवा शासन तणां शुभ स्तंभ होय ते छतां; निर्धन रहे किम नृप अचंबो, अमे मन पामता । तुम्हारे जैसा शासन का सम्राट, इतने बड़े विशाल साम्राज्य का मालिक और तुम्हारे देश में ऐसी गरीबी है जिसके लिए तुम्हें शर्म आनी चाहिए. वह पैसा किस काम का, उस समुद्र के जल की क्या कीमत जो किसी की प्यास बुझाने में सफल नहीं. उस कवि ने कहाः शुं कामना मोटां समुदर तृष्णा कोई नी ना टले; एथी भली नानी नदी ज्यां सर्वे ने शान्ति मले । उससे तो दुबली पतली, छोटी नदी भली कि आने वाले की प्यास तो बुझाती है. समुद्र के पानी की क्या कीमत, भले ही उसके पास बहुत बड़ी जल राशि हो, जल का बहुत विशाल संग्रह हो. उन धनवानों का यहां कोई मूल्य नहीं. बैंक कैशियर की तरह संग्रह करके चले गये, लाखों नोट रोज़ गिने, पर मिले वही के वही जो भाग्य में लिखे थे. वही भोग सके बाकी तिज़ोरी में पड़े रहे. आगे चल कर उस कवि ने वर्णन किया कि ऐसे दीन-दुखियों की सेवा करने का परिणाम क्या? उन्होंने कहा ऐसे महान, सहधर्मी बन्धु, दीन-दुःखी आत्माओं की सेवा करने का परिणाम, अति सुन्दर है, कवि कहता है कि सहधर्मी भक्ति करने से तीर्थंकर पद की प्राप्ति होती है. गणधर नाम कर्म का व्यक्ति उपार्जन कर सकता है. 128 For Private And Personal Use Only Nore
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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