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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: घर में हत्याएं करें, ऊपर से महावीर का नाम लें, राम का नाम लें, कृष्ण का नाम लें, मन्दिर जाकर के परमात्मा को ठगने की कोशिश करें. माला ले जाएं - क्या परमात्मा रिश्वत लेते हैं या आपके पाप की वकालत करने वाले आपके पाप का रक्षण करने वाले हैं? किस मुंह से हम जाते हैं? इतना भयंकर पाप करने पर परमात्मा के चरणों का स्पर्श करने की भी योग्यता उन आत्माओं में नहीं. ज्ञानियों ने कहा कि परमात्मा के दरबार में भी वह क्षम्य नहीं है. आप गृहस्थ हैं, ज़रा विचार कर लेना सद्गृहस्थ हैं. कभी इस पाप का प्रवेश आपके द्वार तक न आये. अपने परिवार तक इस पाप का प्रवेश न आये. आप यह संकल्प कर लें. रोज की यह घटना है. यह हमारे देश और हमारे समाज में यह बड़ी कलंक की वस्तु है और ये घटनाएं रोज़ घटती हैं क्योंकि आर्थिक प्रलोभन है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसीलिए कहा कि माता-पिता, अपने गुरुजन, बन्धु उनकी सलाह के अनुसार कार्य करें. यदि सम्पन्न परिवार, अपने समान कुल, शील, आचार-विचार वाले व्यक्ति हों तो यह गड़बड़ी पैदा नहीं होगी. जहां अनुभव शून्य जीवन हो, तात्कालिक निर्णय किया जाता हो, भौतिक प्रलोभन से कोई निर्णय लिया जाता हो, वहां ये सारी समस्याएं पैदा होती हैं. आपके गृहस्थ जीवन की सारी पवित्रता चली जाएगी. बहुत कुछ आपसे कहा आप एक बार फिर से इस पर विचार कर लेना. अब आगे चर्चा होगी शादी और विवाह के प्रसंग के बाद " तथा शिष्टाचरितप्रशंसन्नमिति” व्यवहार के अन्दर शिष्टाचार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. अब इस सूत्र के अन्तर्गत आपको तत्सम्बन्धी मार्गदर्शन मिलेगा. इसमें सारे शिष्टाचार का परिचय दिया गया है "लोकापवादभीरुत्वं, दीनाभ्युद्धरणादरः । कृतज्ञता सुदाक्षिण्यं, सदाचारः प्रकीर्तितः ॥ सर्वत्र निन्दासंत्यागो, वर्णवादश्च साधुषु । आपदैन्यमत्यन्तं, तद्वत् संपदि नम्रता ॥ प्रस्तावे मितभाषित्वमविसंवादनं तथा । प्रतिपन्नक्रिया चेति, कुलधर्मानुपालनम् ॥ असद्व्ययपरित्यागः, स्थाने चैव क्रिया सदा । प्रधानकार्ये निर्बन्धः, प्रमादस्य विवर्जनम् ॥ लोकाचारानुवृत्तिश्च सर्वत्रचित्यपालनम् । प्रवृत्तिर्गर्हिते नेति, प्राणैः कण्ठगतैरपि ॥ 119 For Private And Personal Use Only धन
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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