SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी सामने रोड़ साफ कर रही थी. कचरे की टोकरी सामने पड़ी हुई थी, उठाकर के आई और देखा तो सामने भीड़. अंदर आकर के झांका तो उसी का पति था, दोनों सफाई कर्मचारी थे. दुकानदार को पूछा कि मफतलाल यह आपने क्या किया? ___ अरे कुछ नहीं, देखो, इसके हाथ में इत्र का फूहा दिया था और इसने जैसे ही सूंघा, यह बेहोश हो गया. अब मैं क्या करूं. मैं भी घबरा गया. उसने कहा अब डरने की जरूरत नहीं, इसका इलाज मेरे पास है. वह गई और इत्र का फूहा तो अलग कर दिया और जो गंदगी से भरी हई टोकरी लेकर के आई थी, उसे थोड़ा नाक के पास घुमाया. जैसे ही उसको अपनी वास्तविकता मालूम पड़ी, उसकी सुगन्ध आई, वह उठकर के बैठ गये. देखा आपने यह चमत्कार. वह जिन्दगी भर इसी गन्दगी में रहा और ऐसा प्रिय, इसको यह गन्दगी प्रिय हो गई. आपने देखा कि टोकरी घुमाते ही एकदम जागृत हो गया. सेठ साहब! यह सुगन्ध सूंघने लायक व्यक्ति नहीं. यह इसी दुर्गन्ध में रहने वाला आदमी है. हम लोग तो इसी में जन्में और इसी में बड़े हुए. ____ ज्ञानियों ने आध्यात्मिक भाषा में कहा, जो संसारी दुराचार में जन्मा, और दुराचार में ही बड़ा हुआ, और दुराचार की दुर्गन्ध से जिसका जीवन सना हुआ है, निर्मित है, वह चाहे जितना भी संयम का सुगन्ध ले जाये मूर्छित हो जाएगा. उसको तो विषय का ही दुर्गन्ध चाहिए. संयमी आत्माओं के संयम की सुगन्ध से वह वंचित रहेगा. दुर्गन्ध में रहने का यह अनादि काल का हमारा स्वभाव है, अनादि काल व्यतीत हो गया. यह वर्तमान इस प्रकार से न जाए, संयम की सुगन्ध से अपनी आत्मा को सुगन्धित बनाओ. यह संकल्प आपको करना पड़ेगा. __ आप देखते हैं, अच्छे-अच्छे घरों के अन्दर, जरा सी भौतिक प्राप्ति के लिए, कैसी भयंकर दुर्घटनाएं होती हैं? कैसी यातनाएं देते हैं? रोज एक-आध घटना तो आपको देखने को मिलेगी ही. जल जाती हैं, जला दिए जाते हैं. जहर दे दिया जाता है. मार-पीट की जाती है. क्यों? कभी मन के अन्दर ऐसा विचार आया कि नैतिक दृष्टि से कितना भयंकर गुनाह कर रहा हूं. निर्दोष आत्मा के साथ मेरा कितना गलत व्यवहार हो रहा है और जगत् मूक-दर्शक बना रहता है. - मैं तो कहता हूं ऐसी आत्माओं और परिवार का सामाजिक बहिष्कार कीजिए, तिरस्कार कीजिए. वे समाज में बैठने लायक व्यक्ति नहीं हैं. सरकार जो भी सजा दे, परन्तु हमारे यहां कभी उनका तिरस्कार नहीं किया गया कि दूसरे व्यक्ति सावधान हो सकें कि यह गलत काम नहीं करना. सामाजिक दृष्टि से उनका सम्मान होना ही नहीं चाहिए. ऐसे व्यक्ति प्रथम कोटि के अपराधी हैं, वे सम्मान के पात्र कदापि नहीं हैं. 118 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy