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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Jan www.kobatirth.org - गुरुवाणी: " पेट काट करके भूखे रह कर के एक व्यक्ति ने अपने लड़के को विदेश भेजा. पुण्य ने साथ दिया कि होशियार निकला. मेधावी छात्रवृत्ति मिल गई. परन्तु इकलौता लड़का होने से माता-पिता का वात्सल्य प्रेम ऐसा था. प्रेम का अतिरेक कई बार पतन का कारण बनता है, भूखे रहकर के फटा हुआ कपड़ा पहन कर के अपने बालक को पढ़ाने की भावना से उस माता-पिता ने बालक को विदेश भेज दिया और धर्म संस्कार जरा भी नहीं दे पाए. बाल्यकाल से लाड़ और प्यार सिर्फ भौतिक अपेक्षा कि लड़का बड़ा होगा, होशियार • होगा, कमाकर के लाएगा और हम बड़े आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करेंगे. अमेरिका में उसने एम.बी.ए. किया. व्यापार प्रबन्धन में उसने स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित कर ली. बहुत बड़ी कम्पनी का प्रस्ताव मिला और उसने पद स्वीकार कर लिया. बहुत पुरानी बात है, जब वह स्टीमर से बम्बई आ रहा था. बाप उसे लेने के लिए गया. कम्पनी से पत्र मिला कि तुम्हारा पुत्र इस स्टीमर से उतरने वाला है क्योंकि घर का परिचय और पता था. बेचारा मैले फटे कपड़े पहने हुए था कि इतने बड़े पद पर मेरा लड़का आ गया. हृदय के अन्दर बड़ा उल्लास था, आज मेरा बालक मेरी कल्पना को साकार करने के लिए आ रहा है. मैंने जो विचार किया था, वह विचार आज पूर्ण ना. अपार प्रसन्नता थी. गरीब बाप अपने बेटे की आशा लेकर बहुत उमंग लेकर कि आज उसे देखूंगा "पोर्ट" (बन्दरगाह) पर गया. प्रतीक्षा कर रहा था कि स्टीमर आएगा. बहुत सारे आफिसर उसकी कम्पनी के उसको लेने स्वागत के लिए गए. पुष्प गुच्छ लेकर, गुलदस्ता लेकर फूल की मालाएं लेकर गए. यह बेचारा फटा हुआ कपड़ा, दरिद्र जैसा दिखाई पड़ने वाला नीचे खड़ा रहा. वहां बड़े-बड़े लोग थे, चपरासी ने घुसने ही नहीं दिया. अगर वहां यह कहता कि यह लड़का मेरा है तो मार खाता कि कोई पागल आ गया. वह बेचारा नीचे आ गया कि लड़का मुझे देखेगा जरूर मुझे बुलाएगा. मेरे पांव पड़ेगा. मैं उसे अपने प्रेम के आंसुओं से नहला दूंगा बड़ी सुन्दर कल्पना थी, परन्तु वह बालक जो दस बरस तक अमेरिका रहा. वह भौतिक वातावरण, वह दुराचरण का उस पर प्रभाव था. वह जैसे ही उतरा और बहुत बड़े-बड़े आफिसर मालाएं पहनाने लग गए, गुलदस्ता देने लग गए, हाथ मिलाने लग गए. पूरी पाश्चात्य संस्कृति उसके जीवन में ऐसा घर कर गयी थी. वह ऊपर से देख रहा है कि मेरा बाप नीचे खड़ा है, बाप एक दृष्टि से उसे देख रहा है. कब मेरा बालक नीचे उतरेगा, मेरे पांव पड़ेगा, मुझे नमस्कार करेगा. अब उसको बड़ा संकोच हो रहा है कि इतने बड़े-बड़े आदमियों के बीच में कैसे इनको प्रमाण करूं, इनसे कैसे मिलूं और कैसे इनसे बात करूं? अब वह बालक आखिर बाप की ही संतान थी. ध्यान बार-बार उधर जा रहा था. एक साथी ने पूछा "हू इज़ देयर" कौन है वह वह बोला 116 For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " - "ही इज़ माई सरवेंट. " Refe
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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