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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यदि इस प्रकार निर्णय के आधार पर यह कार्य किया जाये तो इसमें कोई बाधा या रुकावट नहीं आयेगी. जो आज घर-घर की समस्या है, उसका बहुत हद तक समाधान हो जाएगा. माता-पिता में भी ऐसी उदारता होनी चाहिए कि उसमें बालक की भी सलाह ली जाए ताकि बालक के मन में यह भाव न आए कि मेरे जीवन का निर्णय करने वाले यह कौन होते हैं? सलाह ले लेने से पारिवारिक प्रेम बना रहता है. माता और पिता के प्रति बालक का पूर्ण सम्मान सुरक्षित रहता है. अतः मिल-जलकर यह निर्णय लेना ही अधिक समीचीन है. जहां उनके शील का, उनके आचरण का, उनके व्यवहार का पूर्ण परिचय पहले प्राप्त किया जाये. जैसे कि उनका खान-पान कैसा है?, उनका रहन-सहन कैसा है?. उनके परिवार का वातावरण, उनके गांव, मोहल्ले का वातावरण जान लेना चाहिए. नहीं तो बहुत बड़ी समस्या पैदा होती है. अपनी परम्परा में, अपनी आराधना में, अपनी धर्म-साधना में, अपनी मान्यता में, वह विचार का मतभेद आगे चलकर क्लेश का रूप ले लेता है. सूत्रकार ने इस सम्बन्ध में बहुत सुन्दर स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया और कहा कि समान कुल हो, अगोत्रज हो. एक ही गोत्र में विवाह आदि का कार्य न करें, क्योंकि शारीरिक आरोग्य की दृष्टि से वह हानिकारक है. आगे चलकर वह प्रजा बुद्धि से विकृत हो जाती है और अतिशय विषयी और कामी बनती है. इसीलिए उसका निषेध किया गया. इस परम्परा का निर्वाह करने के लिए उन्होंने कहा कि विवाह एक गोत्र के अन्दर आर्य परम्परा के अनुरूप हो, चाहे हिन्दू हों या जैन. वैदिक संस्कृति में, एक गोत्र में विवाहादि कार्य, बौद्धिक विकृति एवं आरोग्यता की दृष्टि से निषिद्ध माना गया है. इस प्रकार के आचरण जीवन में, भविष्य में, धर्म स्वरूप हो जाते हैं. संस्कारी कूल के अन्दर बड़ी समाधि मिलेगी, चित्त को एक प्रकार का अपूर्व आनन्द मिलेगा और आपकी धर्म-साधना में वह सहायक बनेगा. चित्त की समाधि धर्म-साधना की आधारशिला है, और यदि चित्त में समाधि और शांति नहीं है उसके अन्दर मानसिक क्लेश है, पारिवारिक क्लेश है, तो वह कभी धर्म-साधना में सफल नहीं बन पाएगा. अन्दर से उसके विचार में उद्वेग रहेगा, चिन्ताएं रहेंगी और वह कभी भी एकाग्र चित्त नहीं बन पाएगा. पारिवारिक क्लेश जीवन के अन्दर अशांति का एक मुख्य कारण है और उसका भी मुख्य कारण आपके मन की अशांति है क्योंकि यदि मन चंचल रहेगा तो मन का आकर्षण हमेशा क्लेश को जन्म देगा. जो व्यक्ति अपनी मर्यादा में रहकर अपने गृहस्थ जीवन का संचालन करता है, वह उत्तम प्रकार की आत्मा है. ऐसी आत्मा, आगे चल कर के आत्म-विकास में सफल बन सकती है. आप वर्तमान स्थिति पर सोचिए. रोज नयी दुर्घटनाएं दृष्टिगत होंगी. बहुत कम व्यक्ति इन दुर्घटनाओं में से बच पाए हैं. बहुत कम ऐसे परिवार और घर मिलेंगे, जहां क्लेश । - - 102 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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