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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी सत्य और सदाचार : गृहस्थ जीवन के मूल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम कृपालु आचार्य श्री हरिभद्रसूरि जी महाराज ने अनेक आत्माओं के कल्याण की मंगलकामना से इस 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ की रचना की. सूत्रों के द्वारा धर्म-साधना का मार्गदर्शन दिया, किस प्रकार से जीवन में अपने धर्म को व्यापक बनाया जाये. मेरा धर्म मेरे मकान तक, परिवार तक और प्राणिमात्र तक व्यापक बने. जैसे-जैसे हम उन सूत्रों का चिन्तन करेंगे और चिन्तन के द्वारा, स्वयं के जीवन का निरीक्षण करेंगे, तो जो सत्य है, वह हमारे सामने उपस्थित होगा. मैं क्या हूं? कौन हूं? किसकी कृपा का यह वर्तमान परिणाम है ? और मैं कहां उपस्थित हूं ? और मुझे कहां जाना है? इन सारी बातों पर स्वयं को विचार- चिन्तन करना है. जीवन मिल गया परन्तु इसकी पूर्णता आज तक नहीं हुई. आदर्श जीवन मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु उसकी पूर्णता महत्त्वपूर्ण बात है और जो जीवन के सदाचार या सदाचरण का सूत्र चल रहा है, वह अति मूल्यवान है, इसलिए कि जीवन के उस चारित्र्य को कैसे प्राप्त किया जाए ? सूत्र समझने के उपरान्त उस पूर्णता को प्राप्त करना सरल बन जाएगा. 101 ज्ञानियों ने कहा है, कि आपका जीवन कितना भी सुन्दर हो, चाहे कैसा भी मूल्यवान हो. व्यक्ति धनवान हो, पूर्व का पुण्य लेकर के आया हो, सब प्रकार की सुविधा हो, साधन-सम्पन्न हो, परन्तु यदि जीवन में सत्य और सदाचार के दो कांटे नहीं हैं, तो उस जीवन का कोई मूल्य नहीं. उन दो कांटों का ही मूल्य है. अर्थात् सत्य और सदाचार इन दोनों विषयों की उपादेयता पर चिन्तन हुआ. सत्य के द्वारा उस प्रामाणिकता को प्राप्त करना है, और सदाचार के द्वारा जीवन को सुगन्धित करना है, इसलिए हम इस दिशा में चिन्तनरत हैं. गृहस्थ जीवन का एक आदर्श है - सदाचार. इसके अभाव में कुछ हो नहीं सकता. गृहस्थ जीवन का आधार है, व्यक्ति का उपार्जन करना, और शादी-ब्याह के द्वारा अपने परिवार का निर्माण करना.. For Private And Personal Use Only शादी कहां करनी है ? विवाह-संस्कार कहां किया जाये ? हमारी संस्कृति में विवाह को भी संस्कार की उपमा दी गई है. वह भी जीवन का एक संस्कार है. कैसे करना ? कहां करना ? इसमें इसका निर्देश है. व्यक्ति भावुकता में आकर तुरन्त बिना सोचे निर्णय कर लेता है और उसका परिणाम अनर्थकारी होता है. पूरे परिवार के लिए वह विध्वंसकारी क्योंकि उस निर्णय में उसकी गहराई नहीं, उसका अनुभव नहीं, और इसका परिणाम हम रोज़ देखते हैं. परन्तु घर के माता-पिता के द्वारा जो निर्णय लिया जाता है, वह बहुत सोच समझ कर के, अनुभव के द्वारा लिया जाता है. माता-पिता यह नहीं चाहते कि मेरे पुत्र का जीवन बर्बाद हो या क्लेशमय बने. वे बहुत सोचने के अनन्तर ही निर्णय लेते हैं. बन जाता कृ
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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