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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ ] ब्रह्मचर्य अपनी एक कविता में भोग विलास के दुष्परिणाम की कहानी चित्रित की है। कवि एक बहादुर सिपाही से पूछता है, जो पहले स्वस्थ और मस्त था, किंतु इस समय उसकी जीवन लालिमा पीली पड़ गई थी। उसकी मुआयी सूरत देखकर कवि प्रश्न करता है, 'अरे बहादुर सिपाही ! तुम्हें क्या दुःख है, तुम्हारा चेहरा क्यों पीला पड़ गया है ? तुम ऐसे स्थान में अकेले क्यों घूम रहे हो ?" उत्तर में सिपाही बोला, "मुझे एक दिन घास के मैदान में एक सुन्दरी मिली, जिसने अपने मन मोहक हावभाव से मुझे लुभाया और जब मैं उसके नेत्र बाणों से घायल होगया तो वह मुझे अपने निवास स्थान लें गई, जहाँ मैंने अनेक सम्राटों, सम्राट-पुत्रों और सैनिकों को देखा, जिनकी बडी दुर्दशा थी। उस बेरहम सुन्दरी ने उन सब को अपना कैदो बना रखा था। उन्होंने मुझे समझाया कि तुम्हारी भी यही दुर्दशा होने वाली है, हमारी भाँति तुम्हें भी एक दिन छोड़ जायेगी, किंतु मैंने उनकी बात नहीं मानो । अन्त में उनका कहना ठीक निकला। अब मैं यहाँ ऐसे भयानक स्थान में अकेला धूम रहा हूं।" आप जानते हैं कि भारत के इतिहास में दो नगर प्रसिद्ध हैं, द्वारका और लंका दोनों का विनाश प्रशील से हुा । स्वामो रामतीर्थ ने अपने एक प्रवचन में कहा था, 'पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को युद्ध में १२ बार हराया था उसका कारण यह था कि जब वह युद्ध में जाता था तो ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता था । किंतु तेरहवीं बार युद्ध में जाते समय वह वासना से घायल हो गया। उसने संयोगिता से कहा आज तु मेरी कमर बांध दे । वासना के गुलामों से कमर क्या बंधती ? वह वासना का दास बन कर युद्ध के मैदान में गया और शत्रु को पराजित न कर स्वयं पराजित हो गया।" वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन की हार का कारण भी यही था । कभी वह इन्द्रियों पर संयम रखने और वासना पर विजयी होने के कारण देश का प्रधान सेनापति था। जब वह अक्लोनी गाँव में एक नाई के यहाँ रहता था, नाई की चंचल स्त्री उसकी सुदरता और सुकुमारता पर मुग्ध हो गई। वह हावभाव द्वारा उसे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी, किंतु नेपोलियन को अध्ययन से ही अवकाश नहीं था। जब देखो तब वह पढ़ने में तल्लीन रहता था। देश का प्रधान सेनापति बनने के बाद वह एक बार फिर अक्लोनी For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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