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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० ] काम पुरुषार्थ कठमणि से संयुक्त किया जाता है, तब आनन्द की अनुभूति का स्रोत ही बदल जाता है और जब प्राज्ञा चक्र या भूचक्र विकसित हो जाता है, तब तो वासनाएँ क्षय होने लगती हैं। ज्यों ज्यों वासनाएँ क्षय होती है, त्यों-त्यों प्रानन्द अनुभूति बढ़ती जाती है। इस ग्रानन्दानुभूति का स्रोत इन्द्रिय सुख न होकर आत्मिक सुख होता है। मानस शास्त्र में इसी को उदात्तीकरण कहते हैं । योगशास्त्र के अनुसार यह कामचक्र का उद्ध्वीकरण कहलाता है । काम को शक्ति प्रात्मा की अपनी नहीं है, वह बाहर से आई हुई है। प्रात्मा का अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र प्रादि जो शक्तियां हैं उन पर उसने आवरण डाल दिया है। काम वासना के कारण आत्मा की मूल शक्तियें दबी हुई रहती हैं । ___ 'काम' शब्द के दो अर्थ होते हैं:- १. इच्छा कामना और २. विषय वासना । धन, सपत्ति, ऐश्वर्य, पद प्रतिष्ठा प्रादि सभी इच्छा कामना हैं, अन्त में जब तृष्णा बढ़ते हुए भोग विषयों की इच्छा करने लगती है, तब वह विषय वासना हो जाती है । शास्त्र में कहा है: 'सल्लं कामा विषं कामा, कामा आसि विषोत्रमा ।' काम भोग शूल (कांटे) की तरह चुभने वाले हैं। काम भोग विष के समान मारने वाले हैं । इसीलिये काम भोगों को विष की उपमा दी जाती है। आगे कहा है: 'कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं ।' हे साधक ! तू कामना न कर, कामना ही दुःख का कारण है, जब तू कामनाओं का त्याग कर देगा, तब तेरे सब दुःख दूर हो जायेंगे । कामनाओं के वशीभूत जीवन मुज राजा की तरह दुःख प्राप्त करेगा। काम के त्याग से ८४ चौरासी तक जिन का नाम अमर रहेगा । तू काम के त्याग से स्थूलि भद्रजी की तरह सुखी होगा । प्रानन्दघनजी ने कहा है: 'ससरो मारो बोलो भालो, सासु बाल कुवारि ।। पियुजी मारो झूले पारणिये, हुँ छौं झुलावन हारि ।। नहि परणेली नहिरे कुवारि, पुत्र जणावण हारि। काली दाढी नो कोई न मूक्यो, हजुए हुं छु बाल कुवारि For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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