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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सीमन्घर वीतराग! त्रिभुवन उपगारी; श्री श्रेयांस पिता कुळे, बहु शोभा तुमारो. १ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी; वृषभ लंछने विराजमान. वंदे नरनारी, २ धनुष पांचसे देहडीए, सोहीए सोवनवान; कीर्तिविजय उवज्झायनो, विनय धरे तुम ध्यान ३ वंदु जिनवर विहरमान, सीमन्धरस्वामी; केवल कमला कांत दांत करुणारसधामी. १ कंचनगिरि सम देहकांन, वृषभ लंछन पाय; चोराशी-लाख पूर्व आय, सेवित सुरराय २ छठ्ठ भत्त संयम लोयो ए, पुंडरीगिणी भागः प्रभु द्यो दरिसग संपदा, कारण परम कल्याण. ३ श्री सीमन्धर जगधणी ! आ भरते आवो; करुणावंत करुगा करो, आने वंदायो. १ सकळ भक्त तुमे धणी, जो होवो अम नाथ; भयोभा हुँ छु ताहरो, न हे मेलुं हवे साय. २ सयल संग छंडी, करी चारित्र लईशु; पाय तुपारा सेबोने, शिव रमगी बरोशु. ३ 'ए अळनो मुजने घगो ए, पुरो सीधर देव ! ईहां थकी हुं विना , अपवारा मुज सेव. ४ कर जोडाने विनवू. सामो रहो ईशान; भाव जिनेवा गने, जो कमानदान. ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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