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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आप-तापाद् रक्षितारं क्षितार भव्यवातं विश्व-त्रिवेशिता । सेवन्ते त्वां के न मर्त्या अमर्त्या मूर्त्त धर्म नाथ ! मुक्तान्यकृत्याः ॥१२॥ नीesगोपि ग्रामरागं गृणासि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्योऽपि व्यक्तमायां मृणासि । निस्त्रगुण्य सद्गुणौघ न धत्से कस्यचर्य तेन नेतन दत्से ||१३|| सीमा विश्व-हर्ष-प्रणाली कोऽन्यस्तेऽलं स्तोतुमास्ते गुणालीं । लोकालोकाकाश-सर्व-प्रदेशा- नीष्टे ज्ञातुं को विना श्री जिनेशात् ? ॥ १४ ॥ भावारिभ्यो भूरि-भीत्यावसन्ना देवाः सर्वे यस्य -दीनं दीनं देव ! सीमन्धराख्य सेवां प्रपन्नाः । स स्वं रक्षादक्ष मां रक्ष रक्ष || १५ | प्रत्यूपे त्वां नंनमन्नाकि नाथं, क्षोणिख्यातं केवल - श्री सनाथम् । के के धन्या नैव मिथ्यात्वमाथ, संसेवन्ते सन्ततं तीर्थनाथम् ॥१६॥ इति सुमधुरत्वोऽमन्द - मानन्ददायी, सुर-नरवर तिर्यक्- सर्व - भाषानुयायी, । वसति मनसि नेतर्ध्वस्त- मोह-प्रमाद स्तव कृत- सुकृतानां देशनाया निनाद ॥ १७॥ For Private And Personal Use Only ८५
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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