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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वडी साधु वंदना. पूर्वभव इगबाहु मुनिस, चंदाप्रभु प्रणमुं निसदीस; जगबाहु पूर्वभव जीव, प्रणमं सुबद जिगंद सदीव ॥५॥ लटबाहु पूर्वभव जास, श्री शीतल प्रणमुं ऊहास; दीनराई कुलतिलक समान गुण श्री श्रेयांस प्रवान ॥६॥ इंद्रदत्त मुनिवर गुणवंत, वासुपूज्य वांडू भगवंत पूर्वभव सुंदर बडभाग, बांबू विमल घरी मन राग ॥७॥ पूर्वभव जे राय महिंदर, तेह अनंतजिन मग सुखकर; साबु शीरोमण सिंहस्थराय, धर्मनाथ वांदू चितलाय. ॥८॥ पूर्वभव मेचरथ गुणगाउं, शांतिनाथ जिनवर चित लाउं; पूर्वभव ऋषीमुनि कहीये, कुंथुनाथ प्रणम्यां सुख लहीये. ॥ ९ ॥ रायसुदर्शन मुनि विख्यात, वांदु अर्जुन त्रिभुवन तात; पूर्वभव नंदनमुनिचंद, ते प्रणमं श्री मल्लिजिणंद ॥१०॥ सिंहगिरी पूर्वभव सार, मुनि सुवृतजिण जगदाधार; अदीन सत्रु मुनिवर शिव साथ, करजोडी प्रणमुं नमिनाथ ॥ ११ संखनरेसर साधु सुजाण, रहनेमि प्रणं गुणखाण; राय सुदर्शन जेह मुनिस, पार्श्वनाथ प्रणमुं निसदीस. ॥१२॥ छठे भव पोटिल मुनि जाण, कोडी वरस चारित्र प्रमाण; चोथे भव नंदन राजान, कर जोडी प्रणमुं वर्द्धमान. ||१३|| चोविसे जिनवर भगवंत, ज्ञानदर्शन चारित्र अनंत ; वारंवार करूं परणाम, अष्टकर्म क्षय करवा काम. ॥१४ ॥ ॥ दोहा ॥ मेरु थकी उत्तर दिसे, एहिज जंबु द्वीप, इखषेत्र सोहामणो, जिणविध मोती सीप. ॥ १ ॥ जिहां चोवीसे जिण हवा, चंद्रानंन वारिषेण, एही चोवीसी में सही ते प्रणमुं समसेण ॥ २ ॥ ३९ For Private And Personal Use Only ९३१
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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