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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३० वडी साधु वंदना. साधु सदा प्रणमुं केवली, काल अनादि अनंते वली; जेहि वडा विचरे गुणवंत साधु साधवी सहु भगवंत. ॥४॥ ते सहु प्रणमुं मन उल्लास, अरिहंत सिद्ध ने साधु प्रकास; साधु वंदना करुं हितकार, ते सांभलजो सह नरनार ||५|| ॥ दोहा ॥ इणही जंबू द्वीपमे भरतज नामे क्षेत्र, जिनवर वचन लही करी निर्मल कीधा नेत्र ॥ १ ॥ तिहां चोवीसे जिण दुवां रीषभादीक महावीर, पूर्व भाव करी प्रणमीये पांमीजे भवतीर ॥ २ ॥ पूर्वभव चक्रवर्त्ति थया, रिषभदेव नरइंद, अजितादिक तेवीस जिण, राजा सह मंडलीक ॥ ३ ॥ वृत लेई पूर्व चवदे are avat मनरंग, पूर्वभव तेवीस जिण भण्या अग्यारे अंग. ।। ४ ।। वीस स्थानक तिहां सेवीया, बीजे भव सुरराय, तिहांथी चवी चोवीस जिण, ते हुवा प्रणमुं पाय. ॥ ५ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ नमणी रमणी ॥ एहनी देशी ॥ श्री चक्रवर्त्ति पूर्वभव जाण, वैर नाम तिहां नाम वखाण; ऋषभदेव प्रणमुं जग भाग, गुण गावतां हुवे जन्म प्रमाण. ॥ १ वीमराई पूर्वभव नाम, अजित जिणेसर करूं प्रणाम; विमलवाहन पूर्वभव राय, श्री संभव प्रणमं चीन लाय. ॥२॥ पूर्वभव धर्मसी राजान, अभिनंदन प्रणमुं शुभ ध्यान; पूर्वभव थया सुमति प्रसिद्ध, सुमति जिणेसर प्रणमुं सिद्ध. ॥३॥ पूर्वभव राजा धर्ममित, पद्मप्रभुजीने वांदु नित्यः पूर्वभव जे सुंदरबाहुं, तेह सुपास प्रणमुं जगनाहं ॥४॥ ३८ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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