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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६२ श्री देवचंद्रजीकृत छटक प्रश्नोत्तर. दिखाडवाने अर्थे ए कथन करयो छे. राधनपुरी श्राविका आणंदबाईकृत प्रश्नोत्तराणिपुलाकचारित्रीयाने श्रुत जघन्य नवमा पूर्वना तीनवस्तु उत्कृष्ट नवपूर्व पुरां श्रीभगवती २५ मे शतके कह्यो छे, ते पुलाकचारित्रीयाने द्रव्यलिंग तीन कह्या छे, गृहलिंग, अन्यलिंग, स्वलिंग. ते गृहलिंगी अन्यलिंगी पूर्वकिमभणे ? तेहनो उत्तर जे श्रीभगवतीसूत्रेकह्या छे जे " भावलिंग पडुच्चनियमासलिंगेहुज्झा " ए पाटना आशयथी जे जे द्रव्यथी तीनलिंग कथा ते वैक्रियलब्धिकरतां कारणे साधु गृहस्थलिंग अन्यलिंग करेपरे ते साधु छे. पण गृहस्थ नथी. तथा बीजे प्रश्ने भगवतीमूत्रे बंधनो उदयनो नीम छे. परं सत्तानो नाम नथी. ते भगवतीसूत्रे सर्वअधिकार समकाल कहे ते नियामक नथी. परं पन्नवणा तथा समवायांगे सत्तानो पाठ छे. तथा तीजे प्रश्ने धर्मलाभनो पाठ किहां छे? तेहनो उत्तर जे भवभावना टीका तथा उपमितिभवप्रपंचादिक ग्रन्थे पाठ छे. चोथे प्रश्ने आलोयणनो तुम्हे कह्यो ते किहां कह्यो छे ? तेहनो उत्तर जे परंपरा जीत दीसे छे. तथा नांदि मांडे तिहां अखीयाणां मुकवानो अधिकार विधिप्रपाप्रमुखविधि ग्रंथमे छे. तथा स्त्रीनी असज्झाई चोवीसपहोरनो मान, आवश्यकनियुक्ति तथा प्रवचनसारोद्धारटीका मध्ये छे. तथा तिर्यचणीनी असल्झाइनो जीत दीठो नथी. तथा सिद्धांतरासामध्ये कह्यो छे. तिर्यंचणीनी असज्झाइकालेदुहली धातु झरे छे. पण रुधिर झरतो नथी. ते माटे धातु झरे, असिज्झाइ नथी तथा मनुष्यने धातु झरवा काले पाणीयेसुचि करे ते समूच्छिमनी उपज टालवाने परं असिज्झाइ नथी. तियेचना धातुप्रमुखमलथी समूछिम उपजे नहीं. अने जे कुयुक्ति करी जे जीत For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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