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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६० श्री देवचंद्रजीकृत छटक प्रश्नोत्तर. णामेज कालो थयो. श्वेतपणानो व्यय कालापणानो उत्पाद, इत्यादिक धारवो, तथा तुम्हे पृछ्यो जे ए परमाणु में पूरणगलन ते किम छे ? तेहनो उत्तर. एकपरमाणु में जे वर्णादिक गुण हवे ते एकगुणो हवे. ते समयमांते संखगुण थाय. अथवा असंखगुण थाय, अथवा अनंतगुण थाय, अथवा अनंतगुणो हवे, ते असंखगुण संखगुणा एकगुण थइ जाये. कोइक समये वर्ण इंम थया, कोइक समे वर्ण ते प्रमाणेज रहे तो गंधादिक वधे घटे, कदाकाले वर्णादिक च्यार तेढ प्रमाणे तेहनो तेज रहे. पण अगुरुलघुगुणतो एकसमयथी बीजे समये षद्गुणहानि अथवा वृद्धिपणे नियमापरिणमे ते पूरणगलनतानियमा छे पण अगुरुलघुनी पूरणगलनतागवेखी नयी. वर्णादिकनी जे गवेखी छे तथा परमाणुमध्ये एक परमाणु अन्यथी मिलवारूप स्निग्धता छे तेपण घटेवधे छे " द्वाभ्यांद्वाभ्यां अधिकाभ्यां संबंधः " ए तत्त्वार्थनो वचन छे. ते रस शब्दे तीखा कडुआ मांहिली नवी, तथा फरस मांहिलो नथी. जे रस मध्ये स्वाद धर्म छे, पण मिलवानो धर्म नथी. तथा फरस मांहिला स्निग्धता लेवे तो "रुखस्सरुखेण दुयाहिण्ण" एटले लुखो परमाणुओ बीजा लुखा परमाणुथी द्विगुण अधिकने मिले ए पाठ न ठरे किम तेमाटे मिलवो कारणरूपज स्निग्धता ते पूरणगलनगुणनी छे ते पण घटेवधे छे, जे पुराणुं ते पूरण, घटे ते गलन थयो, तथा एक परमाणु एक लाभे अस्तिकाय कहेवाय छे ते स्यामाटे जे अन्य परमाणुथी मिलाय तेहनो कारण पूरण गलननी आद्रता ते परमाणुमध्ये छे. तेमाटे अस्तिकायना छे. जे अगुरुलघुनी हानिवृद्धितो सर्व द्रव्यमां छे तेमाटे तेहनी पूरणगलनता गणवी नही जे वर्णादिक ४ नी तथा २८ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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