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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री देवचद्रजीकृत छुटक प्रश्नोत्तर. ९४५ इम पाठ छे पण मूलद्रव्यानुयोगमध्ये नजर देतां तथा जीवामिगम अनुयोगद्वारसूत्र तथा पन्नवणा भगवतीना अल्प बहुत्व विचारतां कालद्रव्य जूदो नथी पंचास्तिकायनी वर्त्तना छे, तिहां कोई पूछस्ये जे जेवारे पंचास्तिकायनीवर्तनाने काल मानीये तेवारे कालने एकलो अरूपीपणोठहरे नहि जे पुद्गलास्तिकायनी वर्तना रूपी जोईये, तेहनो उत्तर जे पुद्गलनी वर्तना मुख्यपणे रूपी संभवे पिण वर्त्तना ते पिंड नहीं वर्णादिक तथा अगुरुलघुनो पलटण उत्पादव्ययरूप छे ते व्यक्तअवस्था थाये नही तेमाटे अरूपीज बहु यतिये गिण्यो तथा कोइक पूछस्ये जे काल जेवारे जीवनी वर्तना गवेषीये तेवारे कालने चेतनपणो आवस्ये तेने कहे छे जे जेवारे पर्यास्तिकनयनी भेद व्याख्या करे तेवारे चारित्रादिक गुणमध्ये ज्ञानगुणनी नास्ति कहीइं जे सर्वगुणस्वरूपे अस्ति छे पररूपे नास्ति छे तो वर्त्तनापर्यायने चेतनपणो किम कहेवाये ? तेमाटे कालद्रव्यने पिण अचेतनज कयो, इम कालने उपचारे निक्षेपा द्रव्यादिक च्यार गुण पर्याय सर्व कहेवा, पिण मूलव्याख्याये काल ते पंचास्तिकायनी वर्त्तना छे. सूत्र तथा नियुक्ति तथा भाष्यकार सर्व गीतार्थ तथा गणधर सर्वनी एहिन व्याख्या छेजी, तथा पुछे जे द्रव्य छ छे के पांच छे ? ते जीवाभिगमसूत्रे तो द्रव्य पांच कया छे अने भगवतीप्रमुखमध्ये द्रव्य ६ कयां छे, पिण सूत्रना वचन विरोधी हुवेज नही तेहनो परमार्थ धारवो पण जिहां उत्तराध्ययन भगवती तथा टीकाप्रमुख सर्वत्र जिहां ६ द्रव्य एहवो पाठ तिहां नियमापंचास्तिकायनी वर्त्तना तेहने उपचारे मिन्न व्याख्याये भिन्न द्रव्य कह्यो ते सर्वत्र उपचार जाणज्यो तथा कोइक कहेस्ये जे एहनी साख किहां छे तेहने कहीये 119 For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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