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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. ९१७ उदय न आवे, आठमाना घणीने सर्वविरति उदय न आवे, नवमाना धणीने मुक्ति न थाय. २९५ प्र० - पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पंचेद्रियपणं, अने त्रसपणं, कायस्थितिए लागलगाट तेने तेज पर्याये रहे तो उत्कृष्ट केटलो काळ रहे ? उ० १. पुरुषवेद, उत्कृष्ट ६०० सागरोपम झाझेरा; २, स्त्रीवेद, ११० पल्योपम ६ क्रोडपूर्व सुधी; ३, नपुंसकवेद, अनंती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी सुधी; ४, पंचेन्द्रियपणं, १००० सागरोपम झाझेरा; ५, त्रसपणं, २००० सागरोपम झाझेरा; प्र० २९६ - पांचज्ञान त्रणअज्ञान कालथकी जघन्य तथा उत्कृष्टे केटलो काल रहे. उ०- मतिज्ञान अने श्रुतज्ञाननोकाल जघन्यथी एकसमय उत्कृष्ट ६६ सागरोपझाझेरो, अवधिज्ञान एकसमय ते केम ? विभंगज्ञान समकित पडवजे तेवारे विभंग फीटी अवधिज्ञान थाय त्यारे एकसमय रहि वली पडे, विभंगज्ञाननो विभंगज्ञानेज आवे एम अवधिज्ञान जघन्यथी एकसमय होय, मनः पर्यज्ञानजघन्यथी एकसमय उत्कृष्टे देशेउणां पूर्वकोडी. एक समय ते किम ? जेवारे अप्रमत्तगुणठाणे वर्ततां मनः पर्यवज्ञान उपजीने जाय, तिहां एकसमय जाणवो, केवलज्ञाननां धणीने सादिअनंतोकाल जाणवो. हवे मतिअज्ञानने श्रुतअज्ञानना भांगा कालआसरी त्रणजाणवा, एकअनादि ने अनंतए अभव्यने १ अनादि १६५ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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