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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. "Ann..AN सिद्धपरमात्माओ बिराजे छे, तेमने मारो त्रिकरण शुद्धिए नमस्कार हो. २७३ प्र०-अष्टमहासिद्धिना नाम अर्थसहित कहो. उ०-प्रथमलधिमा ते शरीरनुं हलवापणुं थाय जलपुष्प उपरि तथा कंटकउपर मुनि चाले पण किलामना न पामे १, बीजी वसिमासिद्धि तेहथी सिंह, सर्प, देवमनुजादिक वश्य थाय २, बीजी सत्यसिद्धि परमैश्वर्यपणुं पामे चक्रवर्ति इंद्रादिक थकी अधिकी ऋद्धिविकुर्वे ३, चोथी काम्यसिद्धि तेथी अत्यंत बलसंपदाहोय, पृथ्वीपर्वतादिक उपाडे अचिंतित पराक्रमी होय ४, पांचमी महिमासिफि तेथी मोडं लाखजोजनुं शरीर करे ५, छट्ठी अणिमासिद्धि तेथी नाहनुं कुंथुआ जेवडं रूप करीने भीतमांयी तथा पर्वतमाथी निकळे अने पोते विघ्न न पामे ६, सातमी यत्रकामावसायित्वसिद्धि तेथी जिहां उपयोग दे तिहां जाणे निर्मल श्रुतज्ञान अवधिज्ञानने योगे ७, आठमी प्राप्तिसिद्धि तेथी सकल मोटीवस्तु प्रत्यक्षपणे देखे रूपिवस्तु देखे अवधिज्ञानदर्शन त्रण योगे ८, ए अष्टमहासिद्धि मुनिराजने होय तेहना शब्दार्थ जागवा. २७४ प्र०-क्षणमात्र सुख अने बहुकाळ दुःख ते शी रीते ? उ०-आ जीव आ संसारना अनुकुळ इंद्रिय विषयना भोगादिकने विषे लुब्ध थयो थको मधुबिंदुआना दृष्टांते क्षणमात्र मुख अने बहुकाळ दुःख भोगव्या For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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