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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८६६ विचार रत्नसार. २११ प्र० - नवअनंताए जे जे पदार्थों छे ते कहो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ०- प्रथमना त्रणअनंते कोइ पदार्थ न होवाथी शून्य छे, अने चोथेअनंते अभव्यजीवराशि छे, पांचमे अनंते मध्यम भांगे सम्यक्त्व पडवाइ छे, वळी तेहज पांचमे अनंते शुद्ध सिद्धना जीवो छे, पण ते पूर्वोक्त पडवाइओथी अनंतगुणा जाणवा, पछी छट्टो अनंतो शून्य, सातमुं शून्य पछी आठमे अनंते सर्वे निगोदीयाजीवो, तथा तेथी अनंता अनंतगुणा पुद्गलपरमाणु, तेथी काळ, तेथी सर्व आकाश प्रदेश, तेथी केवळज्ञान तथा केवळदर्शनना पर्याय, ए सर्वे एक एकथी अनंतगुणा पण आठमे अनंते छे, नवमेअनंते कोइ वस्तु विशेष नथी, माटे शून्य जाणवो. २१२ प्र०- सर्व समतिमा पहेलु कयुं समकित उत्पन्न थाय छे ? उ०- सिद्धान्त आगममांहि प्रथम क्षयोपशम सम्यक्य पामे, उपशमनो तंत नहि ते श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणनी कीवेली समकिन पचवीसी मध्ये कहां छे, जे पहिलो क्षयोपशम सम्यक्त्व पामे उपशमनो तंत नहि तथा कर्मग्रन्थमध्ये पहिलो उपशम समकित पामे त्यारपछी क्षयोपसमकित पामे. उपशमनो तंत नहि एहवो आचार्यनो मत छे. अथ त्यारपछी कालसित्तरी ग्रन्थमध्ये कालिकाचायें त्रण जुदा कह्या छे. तथा कलंकी थास्ये ए अधिकार पण कालसित्तरी मध्ये छे. ११३ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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