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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५० विचार रत्नसार. AAAAAAA माप जे जे समयमां प्रभु थया होय ते ते समय तथा ते ते देशना जाणवा; संवत्सरी दानना सोनैया सर्वे इंद्रोना आदेशे वैश्रमण देवता आठसमयमां निपजावी प्रभुना गृहभंडारमा भरे, हवे ते दानना छ अतिशय कहे छेः-१ तीर्थकरना हाथने विषे सौधर्मेंद्र एवी स्थिति करे के जेथी प्रभु दान देतां थाके नहि, जोके प्रभुतो अनंत शक्तिना धणी छे, तोपण आ उत्सव अवसरे ए प्रथमइंद्रनो अधिकार लहावो लेवारूप छे, ते अनादिनी एवी मर्यादा जाणवी; इशानेंद्र सुवर्णमय रत्नजडित छडी, दंड लइ उभो रहे अने चोसठइंद्र सिवाय बीजा सामानिक प्रमुख देवोने दान लेतां निवारे, अने याचकना भाग्यानुसार इशानेंद्र तेना मुखे बोलावे अने २ चमरेंद्र तथा बळीन्द्र प्रभुनी मुठीमां वधारे होय तो पाडी नांखे, अने ओर्छ होय तो पूरूं करी आपे, सामानी प्राप्तिने अनुसारे मळे, ३ भुवनपतिदेवता भरतक्षेत्रना मनुष्यने तेडी आवे, ४ अने वाणव्यंतर देवो तेमने पाछा मूकी आवे, ५ ज्योतिषी देवो विद्याधरोने प्रभुना दाननी खबर आपे, ६ तथा प्रभुना पिता त्रण मोटी दानशाळा करावे, एकमां भरतक्षेत्रना मनुष्यने अन्नपानादि खाद्य वस्तु आपे, बीजीए वस्त्र आपे, अने त्रीजीए आ भरण आपे. १८० प्र०-हवे साधु सन्झाय करे छे. शुभयोगे व्रतादिकनी शुभक्रिया करे छे तथा शुझोपयोगे, शुभ स्वभावे For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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