SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 860
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. D o n' """"" " mm कथन स्वरूप; ३. गणितानुयोग ते द्वीप, समुद्र, क्षेत्रादिनु, क्षेत्रफळादिमापर्नु गणित कथन स्वरूप ४. चरणकरणानुयोग ते क्रियानुष्ठान चारित्रादि व्रत पच्चखाण नियमादि विधि कथनस्वरूप. १४७ प्र०-जीव दुर्लभबोधिपणुं केटला कारणे पामे ? उ०-छहिठाणेहिंदुल्लभबोहिमाणकम्मपकरंति अरिहंताणंअव नवयमाणे ॥१॥ अरिहंतपन्नत्तस्सधम्मस्सअवनंवयमाणे ॥२॥ आयरियाणं अवनंवयमाणे ॥३॥ उवज्झायाणं अवनंवयमाणे ॥४॥ चाउवनस्ससंघस्स अवन्नवयमाणे ॥५॥ समद्दीठीदेवाणं अवनंवयमाणे ॥ ६ ॥ १ श्रीअरिहंत, २ तथा तेमनो भाखेलो जे धर्म तथा तेमनी प्रतिमाजी तथा तेमना वचनरूप जे सिद्धांत इत्यादिक अरिहंत संबंधी अवर्णवाद निंदा, द्वेषादि करवारूप अविनयादि कारण थकी; ३ जिन आज्ञाकारी, जिनशासनस्थंभरूप श्रीआचार्यभगवंतनो अवर्णवाद करवा थकी; ४ श्रीसूत्रसिद्धांतना पारगामी आचार्यपदने योग्य, अनेक शिष्योने सारणावारणादि हित शिक्षा, सूत्रसिद्धांतार्थ अभ्यासना दाता श्रीउपाध्यायजी भगवंतनो अवर्णवाद करवा थकी; ५ ज्ञाने करीने एकांत मोक्षमार्गनाज साधक श्रीसाधु मुनिमहाराजानो अवर्णवाद करवा थकी; ६ जिन आज्ञाकारी सुशील श्रीअरिहंतादिकने पण पूजनिक एवो श्रीचतुर्विधसंघ तेनो अवर्णवाद करवा थकी, जीव दुर्लभबोधिपणं पामे, अर्थात् ८३ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy