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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 105 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. कालद्रव्य उत्पाद, द्रव्य सत्ता ध्रुव, उपचारे एक आकृति ते शुद्ध व्यंजनपर्याय हवे आकाशद्रव्यनो गुण अवकाशदानलक्षण, लोकालोकप्रमाण, अनतप्रदेशी, घटाकाशनो उत्पाद, पूर्ववटाकाशनो व्यय अने द्रव्य सत्ता ध्रुव जाणवी तथा लोकालोक प्रमाण अखंडआकृतिरूप शुद्धव्यंजनपर्याय कहीये, एम षद्रव्यनुं पर्यायादि किंचित् स्वरूप कहिने तेमां जे कांड विशेष जाणवा योग्य छे ते कहे छे:-- गाथा -- परिणामी जीवमुत्ता, सपएसा एगखित्त किरियाय. णिचंकारणकत्ता, सव्वगय इयर अध्पवेसे ( १ ) ८३३ For Private And Personal Use Only १ जीव अने पुद्गल परिणामी, शेष चार अपरिणामी, २ जीवद्रव्य ते जीव चेतनरूप अने शेष पांच अजीव अचेतन जडरूप छे, ३ पुद्गल रूपी मूर्तिमंत छे, शेष पांच अरूपी छे, ४ काल, अप्रदेशी छे, शेष पांच सप्रदेशी छे, धर्म, अधर्म अने आकाश ए त्रण एक अने शेष ऋण अनेक, ६ आकाश क्षेत्र छे, अने शेष पांच क्षेत्री छे, ७ जीव अने पुल बे सक्रिय छे, शेष चार अक्रिय छे, ८ जीव अने पुद्गल बे व्यवहारथी अनित्य शेष चार नित्य छे, ९ जीव अकारणरूप अने शेष पांच कारणरूप छे, १० जीव कर्ता अने शेष पांच अकर्ता छे, ११ आकाश सर्वगत छे, अने शेष पांच असर्वगत छे. • ८१
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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