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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. तथा मनुष्यगतिनो व्यय, देवगतिनो उत्पाद अने जीवद्रव्य तो शाश्वत ध्रुवरूपे छे, ते अशुझमेद जाणवो. हवे पुद्गलद्रव्यना मुणपर्याय विचारीए, त्यां ते पुद्गलद्रव्य पण बे भेदे छे, एक शुद्ध अने बीजो अशुद्ध, आकाशप्रदेशे रहेल शुद्ध अविभागी अच्छेद अभेदरूप परमाणुओ ते शुद्ध पुद्गलद्रव्य, अने द्रयणक व्यणुकादि परमाणुओना बनेला जे स्कंधो ते अशुद्ध पुद्गलद्रव्य, हवे पौद्गलिक गुण पण बे भेदे छे, एक शुद्ध अने बीजो अशुद्ध, त्यां शुफ ते निर्विभागी वीसगुणयुक्त पुद्गलद्रव्यगुण जाणवा. वीसगुणादि सहित अनंत गुणमिश्रित द्वयणुकादि स्कंधरूप मुख्य गमन रूपान्तर गुगनी गौणता अने सत्तागुणनी मुख्यता तेने अशुफपुल गुण कहीए, वळी पुद्गलपर्याय पण शुफ अने अशुद्ध एम बे भेदे छे, ते पण व्यंजन अने अर्थना भेदे द्विविध छे, त्यां शुरू आकाशप्रदेशे अविभागी षट्गुणहानिवृद्धिरूप शुद्ध परमाणु पर्याय ते अने अशुद्धव्यंजनपर्याय ते स्थूल सूक्ष्म परिणामरूप द्वयणकादि स्कंध पर्याय ते; वळी शुद्धअर्थपर्याय ते पोतानी गुणश्रेणि मध्ये घट्गुणहानिवृद्धिरूप परिणमन पर्याय ते, तथा अशुद्धअर्थपर्याय ते द्वयणुकादि स्कंधरूप गुणविगति, तीव्र मन्द तारतम्यभेद परिणमन पर्याय ते; जेम पूर्व स्कंधनो व्यय, वर्तमाननो उत्पाद For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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