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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. जीव परिणामे द्रव्य छे, तेने संगे जीवने बुद्धिपूर्वक निज परिणाम देखायाः-वादळे ढांकेलो सूर्य मेघ घटाए आच्छादित छे, तोपण सूर्यप्रभा प्रगट अनुमाने करी जाणी लोको दिवस अने रात्रिनो विभाग समजी शके छे, तेथी. सूर्य दीठो जेम कहिए. तेम आत्मा पण जिन वचन प्रतीतरूप अनुमान परिणामद्वाराए निर्मळ बुद्धिगम्य दीठो कहिए; वळी जेम धूम्र दिठे अग्नि दिठो कहीए तेम परोक्ष प्रत्यक्ष आत्मा, सम्यग्दृष्टि, वीतराग वचननी प्रतीते यथार्थ अनुभवरूपे देखे छे, तेनी शुद्धि, प्रतीति, श्रद्धान छे, एवीज रीते आत्मानुं जे यथार्थ भासन जाणपणुं थाय तेने सम्यग्ज्ञान कहिये; अने जेवो निज स्वरूपे एकांते वस्तुगवे जीव द्रव्य निष्कलंक जाण्यो, तेवोज रागद्वेष विकल्प रहित परिणमे तेवारे स्वरूपाचरण चारित्र प्रगटे पूआइसु वयसहियं पूणं जिणेहिं निद्दिई, मोहंकोहविहीणो, परिणामो अप्पणोधम्मो ॥१॥ ए स्वरूप चोथा गुणठाणेथी मांडीने आगळ विशुद्ध, विशुद्धतर, विशुद्धतम यथायोग्य पामीये. पाठान्तरे (६३ प्रश्न) ७३ प्र-निर्जरानुं स्वरूप, द्रव्यथी तथा भावथी सम्यग्दृष्टि . अने मिथ्यादृष्टिने जेम होय तेम कहो. ... उ०-निर्जरा एटले कर्मनु साटन करवू, खपाव; ते मध्ये मिथ्याष्टिने निर्जरा, आस्रवबंधपूर्वक होय; सम्यग 99 For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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