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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचार रत्नसार. ७७१ ४१ प्र० - योगप्रत्ययिक सत्तागत, मिथ्यात्वप्रत्ययिक अने अविरतिप्रत्ययिक बंधकृतकर्मों शी रीते टळे ? उ०- अशुभ योगे बांधेलां कर्म तप संजमादि शुभ क्रिया व्यापारखडे, सत्तागत कर्मों शुद्धोपयोगे, स्वद्रव्य पर्याय परिणाम वडे, स्वभावाचरण शुद्ध ध्यानालंबनवडे निर्जरे: सम्यक दर्शनवडे मिथ्यात्व प्रत्यइयां टळे, अने अविरति प्रत्यइयां, विरति परिणामे टळे, ते विषे कहां छे जेः - दुहा. आगमे अध्यातमतणा, कह्या वणा प्रबंध; द्रव्यगुणयोगे परिणमे, तो सोनुं अने सुगंध. ४३ प्र० - कषाय, प्रमाद, इंद्रियविषयराग, अने योग प्रत्यइयां बांधेलां कर्म टाळवाना उपाय कया ? उ०- कषाय प्रत्यइयां, उपशमादि समताभावे टळे; प्रमादे बांधेलां अप्रमाद दशावडे टळे; विषय राग प्रत्यइयां तपस्यावडे टळे; अने योग प्रत्यइयां अयोगी दशाए शैलेशीकरणे प्रवर्ततां टळे. ४४ प्र० - निश्चयनय अने व्यवहारनय जीवने शुं गुणकारी छे ? उ०- सम्यकदृष्टि जीव श्री जिणप्रणीत स्याद्वादना जाण, जैनशैलिना उपयोगी बोधवान भव्यप्राणीओने निश्चयनय दृढता, आस्तिकना करणहेतु छे; अने व्यवहारनय ते जीवना पर्याय शुभाशुभ कर्म रूपे जे गर्या छे, तेने संभवाना हेतुरूप छे; व्यवहारनय के उद्यम है, अने निश्चयनय केडे चित्तनी स्थि १९ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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