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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२ बिचार रत्नसार. २१ प्र० - चार प्रकारे धर्म केवी रीते छे ? ते तेना फळ परिणाम सहित यथार्थ समजावो. उ०- १ आचार धर्म ते रुडा आचारनुं सेवन करवुं जेथी अनाचारो त्याग थाय. २ दया धर्म ते सर्व प्राणीमात्र आत्मवद जाणी सर्व प्रत्ये समान मैत्रीभाव दर्शावी, यथाशक्ति उपकारादि करी, तेमनुं निरंतर भलुं चिंतवनुं, पण अंतम कदापिकाळे अपराधी उपर पण बुरु चिंतववाना द्वेषिपरिणाम न राखे, तेम बेपरवाह प्रवृत्ति पण न दाखवे. ३ क्रिया धर्म ते सामायिक, पोसह, प्रतिक्रमण, पूजादि शुभ क रणी विधिए आदर सहित करे, जेथी कर्मनो काट उतरे, भवसंतति घटे, परंपराये मुक्ति मार्गे जोडाय अने ४ वस्तुधर्म ते जे थकी वस्तु एटले आत्म स्वरूपानुगत पूर्ण बोध उपजे, स्वरूपाचरण स्वरूपरमण थाय अने शुभाशुभ समस्त कर्म निर्जरे तेवो सर्वोत्तम धर्म, एम ए धर्मना चार प्रकार वस्तुगते परमात्माए प्रकाइया छे, अने तेना कारणरूप चार व्यवहार धर्म ते दान, शियळ, तप अने भाव धर्मो छे, आ चार धर्मवडे अनाचार दूर थाय, लौकिकयश प्रतिष्ठा पामे, अन्य तीर्थिओ पण जैनधर्मनी प्रशंशा करे, जैनाचार अनुमोदे; माटे आचारः प्रथमो धर्मः इति वचनात् ; दमाधर्मवडे हिंसक कर्म प्रवृत्ति टळे, शुभ पुण्य पुष्ट करी परंपराये जीव मुक्तिने योग्य थायः ए रीते फळ परिणाम पूर्वक धर्मना १० For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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