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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७५० कर्म्मग्रन्थस्य र्थः अर्थ -- हवे श्रेणिनो स्वरुप कहे छे चौदराज प्रमाण लोक छे, बुद्धियें करीये तिवारें सातराज प्रमाण घन थाय. तेहनी दीर्घ लांबी एकप्रदेशनी श्रेणिने सेढी कहीये, ते सेढीनो वर्ग एटले तद्गुणो- गुणाकार करीये ते प्रतर थाय, तेहने वर्ग करे घन थाय ॥ ९७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणदंस नपुंसि त्थी, वेअ छक्कं च पुरिसवेअं च । दो दो एगंतरिए, सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥९८॥ अर्थ -- हवे उपशम श्रेणि कहे छे-इहां उपशम श्रेणें उपशम समकिती लीधो छे, ते कहे छे- प्रथमयी चोथाथी मांडी सातमा गुणठाणा सीम अनंतानुबंधी ४ उपशमावे, पछे दर्शन मोहनी ३ तीन उपशमावे, पछी आठमे गुणठाणे आवी स्थिति घातादिक पांच ५ करण करीने नवमे गुणठाणे आवी नपुंसकवेद उपशमावे, १ पछी स्त्रीवेद उपशमावे १, पछी हास्यछक ६ उपशमावे, पछी पुरुषवेद उपशमावे, पछे बे बे कषाय उपशमावे, पछे एक उपशमावे (१) आंतरे अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी को २, उपशमावे, पछे संजलणो क्रोध, १ उपशमावे पछे अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी मान उपशमाच्या पछी संजलणमान उपशमावे पछी अप्रत्याख्यानी, प्रत्याखानी माया उपशमावे, पछी संजलानी माया उपशमावे, पछी प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्यानी लोभ उपशमावी, संजलना लोभनी किट्टी करे, तेहनो अनंतमो भाग संजलना लोभनो ते दसमे गुणठाणे उपशमावे ए रीते सरखं सरखं उपशमावे पछी उपशांतमोही थाय हवे क्षपकश्रेणिनो क्रम कहे क्रे. ॥ ९८ ॥ १.७० For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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