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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
७३५
अर्थ-सेसम्मि-तैजसादि १०, प्रकृतिनो उत्कृष्ट, संघन्य, ए तीन ३, भांगे रस बांधे, ते दुहा सादि, अध्रुव, ए बे भेदे बांधे, जे एहनो बंधकाल अल्प छे ते माटे, तथा घाती ३८ नो उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्यरस, सादि, अब्रुव बे भेदे बंधाये. तथा उच्चगोत्रनो, उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य, अजघन्यरस सादि अवव बे प्रकारे बंधाय छे, तथा नीचगोवनो उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट, जघन्य ए तीन भांगे रस बांधे ते सादि अवुव बांधे. तथा शेष प्रकृति ७२ नो जवन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट, अनुस्कृष्ट ए च्यारे ४, प्रकारनोरस ते सादि, अधुवभेदे बांधे, इहां पयडीने आशये शेषप्रकृति ७४ ग्रहे छे, गोत्रनी प्रकृति पिण अव बंधी छे ते माटे. तथा उपघात १, ध्रुवबंधी छे, परं ए प्रकृतिबंधे ध्रुवबंधी छे ते माटे ए अनुभाग रसबंधनो अधिकार कटो. . हवे प्रदेशबंध अधिकार कहे छे-तिहां प्रथम वर्गणानुं स्वरुप कहे छे-र-एकपरमाणु दुग-बे परमाणुआनो स्कंध, इम श्याक, इम संख्याताणुक, असंख्याताणुक, अनंतापरमाणु मिळे ते अभव्यथी अनंतगुणा मिळे जे खंध नीपजे तिवारे उरलोचिअ
औदारिकने उचित कहेतां ग्रहेवा योग्य वर्गणा जघन्य थाय, तह-तिमहीज अंतरित-एथी पाछली ते सर्व अग्रहण जाणवी. ए औदारिक वर्गणा बादर वीसगुणी छे. ।। ७५ ।। एमेव विउव्वा हार, तेय भासा णुपाण मण कम्मे । सुहुमा कमावगाहो, उणूणंगुल असंखंसो ॥७६॥ ___अर्थ--एमेव-इमही विउव्व-वैक्रिय वर्गणा, बीजी २, अने त्रीजी आहारक वर्गणा ३, तैजस वर्गणा ४, भाषावर्गणा
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