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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्म्मग्रन्थस्य वार्थः ७१.१ अर्थ — सर्व प्रकृतिना जघन्य स्थितिबंधे जघन्य अबाधा अंतर्मुहूर्तनी जागवी. एटले सर्वजवन्य स्थितिनी जवन्य अबाधा अंतर्मुहूर्तनी ते उपर स्थिति कंडक' एक वधे एक समय अबाधा वधे. इम उत्कृष्ट स्थितिमां उत्कृष्ट अबाधा जाणवी, अने आउखा च्यारनी उत्कृष्टी स्थिति जघन्य अबाधा दुवे, इहां चौभंगी छे, आउखो उत्कृष्टे अबाधा उत्कृष्टी १, आउखे उत्कृष्टे अबाधा जवन्य २, आउखो जवन्य अबाधा उत्कृष्ट ३, आउखो जवन्य अबाधा जघन्य ४ जाणवी. वळी वाचनान्तर कहे छे. कोइक आचार्य जिन नामनो जघन्य स्थितिबंध देवताना आयु प्रमाण जाणवो, एटले आठमा गुणठाणाना छठ्ठा भागना चरम समये जीननामकर्मनो जघन्य स्थितिबंध १० हजार वर्ष प्रमाणनो होय छे. आहारक दुगनी विपाकनी जघन्य स्थितिबंध अंतर्तनी छे, जे आठमा गुणठाणाना छठ्ठा भा गना चरम समये - आहारको जवन्य स्थितिबंध अंतर्मुहूर्त होय छे. ॥ ३९ ॥ सत्तरसमहियाकिर, इगाणुपाणुंमिहुंतिखुडुभवा । सगतीस सयतिहुत्तर, पाणू पुण इग मुहुत्तंमि ॥४०॥ अर्थ — दवे क्षुलकभवनो मान कहे छे. एक आणपाण श्वासोश्वास मध्ये सत्तर भव पुरा अढारमा भवना १३९५ भाग अधिक एटले सत्तर भव झाझेरा एक श्वासोश्वास मांहे. थाय. ए क्षुल्लक भव जाणवो, क्षुल्लक एटले सर्वयी न्हानो भव ए भाग उश्वासना ३७७३ भाग करीये तेहवा १३९५ भाग लेवा, सडत्रीससे तिहत्तर ३७७३ पाणू, पुण कहेता श्वासोश्वास गये एक मुहूर्त थाय ॥ ४० ॥ १३१ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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