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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य टवार्थः wwwwwwwwwwwww हिथी एक कण द्वीपें पछे एक कण समुद्रमें नाखतो जान तिवारे केतलाइक द्वीपमां नांखतां पेहेलो पल्य जिणे द्वीपें पूरो खाली थयो ते द्वीपने प्रमाणे बीजो नवो पल्य कल्पीइं ते पण सरसवें करी भरीजे तेपण एक कण द्वी एक कण समुद्रे नाखीजे, जिवारे ते पल्य खाली थाय, तिवारें एक सरसव सिलागापल्य मांहे घालीजे. तिहां कोइ कहेजे तेमांहेयी एक घालीजे. केइक नवो १ एक घालीजे.॥७७॥ खिप्पइसिलागपल्लेगु, सरिसवो इअसिलागखवणेणं। पुण्णो बोओअ तओ, पुर्वपि व तमि उद्धरिए ॥७॥ . अर्थ---इम सिलागापल्यमें एक दाणो मुक्यो पछे वळी त्रीजो अनवस्थित भरीजे, छेहेले द्वीप समुद्र प्रमाणे तेपण खाली थाय तिवारे बीजो दाणो सिलाकामध्य बालीजे, वळी जिणे द्वीपे समुद्रे त्रीजो अनवस्थित पूरो थयो छे तेटलो चोथो अनवस्थित कल्पीजे, ते वळी एक कण द्वीपें एक कण समुद्रे नाखतो खाली थाय, तिवारे एक त्रीजो कण सिलाकामे भेळीजे. इणे भांते (एवी रीते) नवनवा अनवस्थित भरीने खाली खाली करी एक कण सिलाकामें भेळतां सिलाकपल्प पूरो भराणो, तिवार पछी ते शिलाकापल्य पण पूरो उपाडी जे इमहीज द्वीप समुद्रे एक एक कण नांखतां खाली थाप तिवारें एक कण प्रतिसिलाकापल्यमें घालीजे. वळी तिहांयी नवनवा अनवस्थित करी भरीजे, खाली थाय तिवारे एक एक सिलाकामें घालीजे, वळी अनवस्थित काजे एक कण सिलाकामांही घालीजे, इम अनवस्थित नवनवा करी सिलाका बीजीवार भरीजे तेपण उपाडी जे द्वीपे समुद्रे ठोलाइजे. ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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