SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 701
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७६ कर्मग्रन्थस्य टबार्थः अर्थ-समकीत १, देशविरति २, प्रमत्त ४ ए च्यार गुणठाणे जीव छे ने क्षायोपशमिक समकीती छे तेहने ३ तीन भाव छे १ औदयिक, २ पारिणामिक, ३ क्षयोपशम ए ३ छे. अने जे जीव उपशमी के क्षायिक समकीती छे तेहने तीन ३ भाव तेहिज अने उपशम अथवा क्षायिक ए ४ च्यार भाव छे. उपशम समकीतीने उपशमश्रेणिये च्यार ४ भाव छे. उपशम समकित चारित्र १, औदयिक १, पारिणामिक १, क्षयोपशम उपयोग ए च्यार छे. अने क्षायिक समकिति उपशम श्रेणिमां होय तेने पांच भाव छे-अपूर्वकरण गुणठाणा ८ थी क्षीणमोह १२ मा ताइ च्यार ४ भाव छे-क्षायिक भाव १, औदयिक भाव १, क्षयोपशमिक १ पारिणामिक ए ४ भाव छे. शेष, मिथ्यात्व, सास्वादन मिश्र ए ३ गुणठाणे पारिणामिक १, औदयिक १, क्षयोपशमिक १, त्रण भाव छे अने तेरमे चौदमे गुणठाणे पारिणामिक १, औदयिक १, क्षायिक १, ए त्रण भाव छे. ए १४ चौद गुणठाणे भाव कह्या एक जीवआश्री गुणठाणे भाव कह्या. ॥ ७३ ॥ संखिज्जेगमसंखं, परित्त जुत्त निय पय जुयं तिविहं। एव मणंतंपि तिहा, जहन्नमज्झुक्कसा सवे ॥७४॥ ___ अर्थ-हवे संख्यातादिकनो द्वार कहे छे. संख्यातादिकना जे भेद छे ते कहे छे-तेमां संख्यातानो १, एक भेद छे, अने असंख्याताना तीन भेद छे-१ प्रत्येकअसंख्यातो, २ युक्तअसंख्यातो, ३ असंख्यातअसंख्यातो ए तीन ३ असंख्याता जाणवा. इम अनंताना तीन भेद छे..१ परित्त For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy