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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६० कर्म्मग्रन्थस्य टेवा : अहखायसुहुमि, केवल दुगि सुक्का छाविसेसठाणेसु । नर निरयदेव तिरिआ, थोवा दु असंखणंतगुणा ॥ ४० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ -- यथाख्यात चारित्र में १, सूक्ष्मसंपरायचारित्र में १, केवलज्ञानमे १, केवलदर्शन १, में एक ९, शुक्ललेश्या छे बाकीनी मार्गणा ४१ एकतालीसमें छ ए लेश्या छे ते ४१ मार्गणा ते ३, गति १, त्रस १, तेद्री योग ३, वेद ३, कषाय ४, ज्ञान ७, संजम पांच दर्शन ३, भव्य बे समकीत ६, सन्नी १९, आहारक बे ए ४१ मार्गणाए ६ छ लेश्या छे हवे अल्पबहुत्व कहे छे - मनुष्य थोडा छे- संख्याता छे उत्कृष्टथी २९ आंकतांई छे. मनुष्यथी नारकी असंख्यात गुणा छे. नारकीथी असंख्यातगुणा देवता छे. देवताथी तिर्यच अनंतगुणा छे जे सूक्ष्म बादर एकेन्द्रीय सर्वमांहि गणवा. ॥ ४० ॥ पणचउ तिदुएगिंदि, थोवातिन्निहिया अणंतगुणा । तसथोव असंखग्गी, भूजलनिल अहियवणणंता ॥ ४१ ॥ अर्थ —— पंचेन्द्री थोडा पंचेन्द्रीथा चौरेंद्रि अधिका. चौरेन्द्रीयी न्द्री अधिका, तेन्द्रीय बेन्द्री अधिका, बेन्द्रीयी एकेन्द्री अनंतगुणा छे. एवं पंचेन्द्रीनी जाणवी, त्रसकाय थोडा छे, तिणसुं अग्निकाय असंख्यात गुणा छे, अग्निकायसुं पृथ्वीकायना जीव अधिका, पृथ्वीकाययी अपकाय अधिका, अपकायथी वाउकाय अधिका, वाउकाययी वनस्पतिकाय अनंतगुणा छे. ॥४१॥ मणवयणकायजोगी, थावाअसंखगुण अनंतगुणा । पुरिसायोत्रा इत्थि, संखगुणा तगुण कीवा ॥४२॥ ८० For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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