SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 677
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९२ arts carर्थः · अर्थ -- पुरुषवेद १, स्त्रीवेद १, नपुंसकवेद १, क्रोध १, मान १, माया १ ए छ ६ मार्गणामे मिथ्यात्वसु मांडी अनिवृत्तिबादर पर्यंत नव गुणठाणा छे. लोभ कषायमे मिथ्यात्व सूक्ष्म पराय पर्यंत १० गुणठाणा छे. अविरतिमार्गणामे मिथ्यात्व अविरति तांइ ए ४ च्यार गुणठाणा छे. मतिअज्ञान १, श्रुतअज्ञान १, विभंगज्ञान १ ए ऋण ३ मार्गणाम पेहेला बे अथवा त्रण ३ गुणठाणा छे. अचक्षुदर्शन १, चक्षुदर्शनमे १, मिथ्यात्वसु क्षीणमोहतांइ बारे गुणठाणा छे. यथाख्यातचारित्रमे इग्यारमो बारमो तेरमो चौदमो ए च्यार ४ गुणठाणा छे. ॥ २३ ॥ मणमाणि सग जयाई, सामाइअछेअघउ दुन्नि परिहारे । केवलदुगि दोचरमा, जयाइ नवमइसुओहिदुगे ॥ २४ ॥ अर्थ -- मनः पर्यायज्ञानमे प्रमत्तगुणठाणेसु मांडी वीणमोह तांडू सात गुणठाणा छे. सामायिक १, छेदोपस्थापनीयमे छठ्ठे प्रमत्त गुणठाणे शुं मांडी नवमा तांइ ४ च्यार गुणठाणा छे. - दुन्नि परिहारे - परिहारविशुद्धिमा प्रमत्त अप्रमत्त ए दोय गुणठाणा छे. केवलज्ञान केवलदर्शनमे सयोग- अयोग ए दोय देहेणं गुणठाणा छे. मतिज्ञान १, धुतज्ञान १, अवधिज्ञान १, अवधिदर्शन १. ए प्यार मार्मणामे अजर अविरति गुणठाणे मांडीने क्षीणमोह तांइ नव गुणठाणा ९ छे. ॥२४॥ अड उवसमि चड वेअगि, खइए इक्कार मिच्छतिग देसे । सुहुने सहाणं तेरस, जोगआरए ॥ २५ ॥ अर्थ - उपशमसमकीतमे अविरतिसुं मांडी उपशान्तमोह तांड सु ७२ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy