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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार वहारराशी निगोद. तेमां जे बादर एकेन्द्रियपणो भावें वसपणो पामीने पाछा निगोदमां जाइ पड्या छे ते निगोदिया जीवने व्यवहार राशिया कहिये, अने जे जीव कोइपण काले निगोदमांथी निकल्या नथी ते जीव अव्यवहारराशीया कहिये अने इहां मनुष्यपणामी जेटला जीव कर्म खपावीने एक समयमां मोक्ष जाय छे तेटला जीव तेज समये अव्यवहारराशी सूक्ष्म निगोदमांयी निकलीने उंचा आवे छे. जो दश जीव मोक्ष जाय तो दश जीव निकले. कोइक वेलाए भव्य जीव ओछा निकले तो ते ठेकाणे एक बे अभव्य निकले पण व्यवहारराशीमां जीव कोइ बधे घटे नही. एवा निगोदना असंख्याता लोकमांहेला गोला ते छदिशीना आव्या पुद्गलने आहारादिपणे ले छे ते सकल गोला कहेवाय अने लोक अंतना प्रदेशे जे निगोदना गोला रह्या छे तेने त्रण दिशीना आहारनी फरशना छे माटे पिकल गोला कहिये. ए सूक्ष्म निगोदमां पांच थावरना सूक्ष्म जीव ते सर्व लोकमां काजलनी कुंपलीनी पेरे भरया थका व्यापी रह्या छे अने साधारणपणो ते मात्र एक वनस्पतिमांज छे पण चार थावरमां नथी. ए सूक्ष्म निगोदमां अनंतु दुःख छे तेनुं उदाहरण कहे छे. सातमी नस्कनुं आयुष्य तेत्रीस सागरोपमनुं छे. तेत्रीस सागरोपमना जेटला समय थाय तेटला वखत सातमी नरकमां उत्कृष्ट तेबीस सागरोपमने आयुषे कोइक जीव उपजे तेटला भवमां जेटलं छेदन भेदमनुं दुःख थाय ते सर्व एकटं करिये तेथी अनंतगणुं दुःख निगोदना जीव, एक समयमां भोगवे छे. दृष्टान्त जेम कोइक मनुष्यने साडा मण-क्रोड लोढानी सुइने अनिथी तपावीने कोइक देवता समकाले चांपे तेने जे वेदना थाय तेथी अनंत गुणी वेदना नि For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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