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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मग्रन्थस्य टबाथैः mmarAmAvaina अर्थ-अंगोपांग नासिका आंख कान प्रमुख सखरा ठामने ठाम निपजावे, निम्माण-ते निर्मागनामकर्म कहीजे सूत्रधार सरखो कहीजे छे जिम सूत्रधार पृतळी घडे ते समी अंगोपांग सुंदर घडे. उपवातनामकर्मयी जीवनो शरीर हणाय; आपणे शरीरे वधती आंगुली जीभ-पडजीभी रसोली प्रमुख उपजे तिग शरीर कुरूप होवइ, कुरूप दीसई. ॥४८॥ बितिचउपणिदियतसा, बायरओ बायरा जिआथूला। नियनियपज्जत्तिजुआ, पज्जत्ता लद्धिकरणेहिं ॥४९॥ अर्थ-बितिचउ-द्री तेंद्री चौरेंद्री पंचेंद्री जीव सर्व चाले हाले छे तिणे ते त्रस कहीजे. बादरनामकर्मना उदयथी जीव दीर्थपणुं पामे. आप आपणी पर्याप्ति पूरी करे ते पर्याप्त नाम कहीजे. पजात्ता-ते पर्याप्ति बे प्रकारनी छेलब्धि पर्याप्त १ अने करण पर्याप्त २ तिहां आपरी पर्यात पूरी पारस्ये ते लब्धिपति १, जे पर्याप्त पूरी करी रह्या ते करणपर्श. २ ॥ ४९॥ पत्तेअतणपत्ते-उदएणं देतअहिमाइ थिरं । नानुवरिसिराइसुहं, सुभगाउ सधजणइट्ठो ॥५०॥ अर्थ-जे एक शरीरे एक जीव ते प्रत्ये नामकर्म वाहीजे. जेहना उदयथी दांत, झाड थिर रहे ते थिरनामक कहीजे. नामि उपरे मस्तक ह जे उपरलो कि ते शुभ कहीजे. सुभगनाममयी सर्व जगतने वलुभ थाय, मोहनकारी थाय. ॥ ५० ॥ ... For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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