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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. on दरसण ज्ञान चारित्र वली, सुख वीरज हो जसु प्रगट अनंता भवतमध्वंसा भानुज्युं, सिद्धांतमे हो अतिमहिमा महंत. परमा०१३ ज्ञान सुधारससम सजे, अविकारी हो परमानंदनो धाम; देवचंद्र सुखसागरू, अक्षरत्रय हो गुण निजराम. परमा० १४ दृहा. श्रीजिनशासन अगमगुण, शिवसुखनो दातार; स्यादवाद परिणाम धरि, आतमदर्शक सार. मिथ्यातमभर भांजिवा, रविसम जिनमत एहः सिफ शुफ परमात्मरस, धारक निजगुणगेह. सूक्ष्म निगोदी सिद्धिथिति, बहु द्रव्य पर्याय; एकता व्ययउत्पादनी, इण विण बीय न कहाय. नामजैन जन बहुत छे, तिणथी सिद्ध न काय; सम्यग्ज्ञानी शुद्धमति, भावजैन शिवराय. सिद्ध साधिवा समकिती, आराधे निज ध्यान; तेह वखाण्यो जैनमे, अगम अपार प्रधान. सोकिरे इक आखरे, में वरण्यो छे एहः सुधासम झिलेज्यो तुरत, ग्रंथ तणो गुण लेह. पूरणध्यानतणी कथा, जाणे जिनवर देव, निश्चय शिवसाधक गिणी, धरज्यो ते नितमेव... ढाल-राग धन्याश्री. इणपरि भाव भगत मन आणी. एहनी देशी॥ ध्यानकथामे एह वखाणी, आतमरूप पिछाणी जी; पूरवसूत्रतणी सहि नाणी, जिम दीठि तिम आणी जी. ध्यानक. १ पंडितजन मनसागर ठाणी, पूरणचंद्र समान जी; सुभचंद्राचारिजनी वाणी, ज्ञानीजन मन भाणी जी. ध्यानक० २ १२५ mrr or For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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