SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'व्यानदीपिकाचतुष्पदी. कंप० जैन० देव० सेवे अमर असं कंषम नही हो लाल, माने सहु जग आण ताहरी ए सदु हो लाल; ताह० पुण्य उदयनो सुख कहे कवि केटलो हो लाल, कवि० सुरपति आगे आय मंत्रि कहे एतलो हो लाल. मंत्रि० ५ सुरपति चेतन ताम काम ए पुण्वना हो लाल, काम० पूरव कृत तप शील चरण वर दानना हो लाल, चरण० पिण शिवसाधक माग एण गमे नही हो लाल, एन० एह विनासी सुख दुख गिणजे सही हो लाल. दुप० तिहां समकिती देव तत्त्व निज थिर करे हो लाल, तत्त्व ० सारे जिनवरसेव जैन महिमा करे हो लाल; कल्पवृक्ष दसभांति देग मनकामना हो लाल, इंद्रिय सुखकं तेथि नहि काई मना हो लाल. नहि का० देवलोक कितां अछे देवांगना हो लाल, अछे दे० अच्युत लगी सुर नारि जाय छे दुख विना हो लाल. दुष० उपर नही विकार इंद्रिय पिण को नही रे लाल, इंद्रि ग्रेवेका लगि चालि मिथ्यात्वीनी कही हो लाल; मिथ्या ० पंचानुत्तर देव सहित समकित अछे हो लाल, सहि ० सर्वारथसिद्ध देव एक भवभय छे हो लाल. चौगतिमे सुख दुख लह्यो में बहु परे हो लाल, लह्यो • षिणमे राच्या मुझ गरज न विकासे रे हो लाल; गरज० arrat fनश्चल देव सरखं जगजाण हो लाल, सरव० भमियो चवदह राज तोहि शिवठाण ए हो लाल. तोहि० १० तिन भुवननो जाण त्रिविध गुण राव ए हो लाल, त्रिविध० चोथो धर्म सुध्यान लोकथिति ध्याव ए हो लाल; लोक० एक० ९ १०७ For Private And Personal Use Only ५५९ 113 -
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy