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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. निस्संगी मन संवरी, कछ जेम दमि अक्षा . शमधारी मुनि संवरी, धरे ध्यान सुप्रत्यक्ष. इंद्रिय दमि मन वश करी, धरे भाल धरी ध्यान; तजि उपाधि मन स्वच्छ करि, चित्त धरे सम थान. ३ प्राणायाम अभ्यासथी, मन नवि पामे थान; निज समाधि थिर साधिवा, प्रत्याहार प्रधान. शांत संवैगी रागविणु, मुनि नवि साधे वायु; आतमज्ञानी मुनि तजे, प्राणायाम उपायु. वायु चालणरा दुक्ख करे, मन पामे बहु घेदः अधिक सिद्ध पिणका नही, तिण न कह्या बहु भेद. ६ इंद्रि दमि सम आदरी, धर्मध्यान थिर चित्त; नेत्र श्रवण युग भाल मुष, नाभि हृदय सुष चित्त. ७ मासा अग्रा लालभ्र, इत्यादिक तन अंका तिहां इक थानक मन करी, घरे ध्यान उमंग..९ शांति चिस मुनिने वधे, ज्ञान ध्यान निज चित्तः । प्रत्याहार सुधारणा, दाषी ध्यान निमित्त. ढाल-रंगीले आतम एहनी. गुण अनंतधर जीवने, वंचे भवमे कर्म; धरो निज भावना० १ राग द्वेष मुषहिवहढ्या, सनु हणुं धरि ध्यान; भरो० आत्म लपो निजज्ञानसुं, बाली कर्म अज्ञान. धरो० २ कर्म हणु तिम ध्यानसुं, जिम न पहुं भवमांहे; धरो० । भव ज्वर अज्ञाने नड्या, नवि दिठो शिव राह. धरो० ३ परमातम जगगुरु ठग्यो, नीरस विषयने संग; धरो० । सर्वज्ञ आत्म नवि लष्यो, भ्रम अज्ञाने रंग धरो० ४ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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