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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. थिर मन ऋजु तन धारे, चित्राममूरति आकारे हो; मुनि० मन मल धोय विवेके, निज ज्ञानयी राग न रोके हो. मुनि० ११ सागर जेम गंभीर, कनकाचल जिम अति धीर हो; शांत समस्त विकल्प, नाठी सह भ्रमणा जल्प हो. मुनि० १२ दृषद चित्रामसम जाणे, जसु मुरति सहू सम जाणे हो, मुनि० थिर आसन गुणगेह, शुद्धातमध्यानी तेह हो; मुनि० १३ इण विधि ध्यान जे ध्यावे, ते देवचंद्रपदवी पावे हो. मुनि० १४ दूहा. ध्यान सिद्ध निज शुद्धिने, मन घर प्राणायामः आगमरीति वर्णवु, कारण शिवसुख ठाम. मन थिर प्राणायाम विणु, करि न सकेइ कोय; पूरक कुंभक रेचके, तीन भेद सो होय. बाहर आंगुल षांचिने, जे पूरिजे वायु; पूरक पवन को तिको, पवन जाणमे रायु रुंधे थिर करि पवनमे, नाभिकमल थिर पंति; कुंभ तणी परि तेहने, कुंभक पवन कहंत. हलवे हलवे नीसरे, कोठाथी जे वायुः चित्त शांत कारण तिको, रेचक पवन कहायु. नाभिकंद हृदिपदम विचि, पवन नाथनो ठाण आयु शुभ फल कहे, पवन चालिना जाण. जोगी पवनाभ्यास घर, जाणे चेतन चालि; हृदयकमलमें आणीने, पवन सहित मन वालि. विषयाशा मन जल्प सहु, घटे वधे निज नाण; अक्ष कषाय नासे अलग, स्वांतभावना आण. For Private And Personal Use Only ५३३ १
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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