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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .. ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. हांरे० मोह क्षोभ मनने करे, अस्थि रुधिर हुवे जेथी मोरा लाल; भीमशब्द जीहां जीवना, ध्यानी न रहे तेथी मोरा लाल. भावो ०१० हांरे० ध्यानध्वंसना जगतमे, जिके कारण जाणि मोरा लाल; ते निश्चयस्युं मुनि तजे, देवचंद्रनी वाणि मोरा लाल. भावो० ११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूहा. शेत्रुजादिक तीर्थ शीर, वली कल्याणक ठाम; सागर गिर बन गव्वरे, नदी तीर गढ धाम. तरु कोटर उद्यानमे, गुहागर्भ समशान; जिनगृह आदिक थानके, मुनि आरंभे ध्यानं. गतकोलाहल मन करी, निरुपद्रव सुष थान; हर मंडप शून्य गृह, मुनि आरंभे ध्यान. घन तप वायु बुषारथी, जिण थानक नहि हाण; जिहां नव धरे रागादि नित, मुनि आरंभे ध्यान. काष्ट शिला भूपट्ट परि, आसन मंडे साधु; वज्र वीर पर्यक तिमः कायोत्सर्ग अगाधु. जिन आसन मन थिर रहे, तेही ज आसन सार; काउसग पर्यक दो, आसन पंचम आर. प्रथम संघयणी निर्भयी, थिर आसन मतिवीरः शुद्धध्यान धरि आपणो, सिद्ध लहे मुनिवीर. नवि चाले स्वभावयी, आय मिल्यां अति दुषः सहे परिषह संवरी निज आतम सनमुष. हरि अहि हाथी असुर भय, भूमि भ्रमण विधान; चक्र शूल दुष उपना, धीर न छोडे ध्यान. ७९ For Private And Personal Use Only ५३१ WWWWR १ ३ ४ ९
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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