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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૨૮ www.kobatirth.org आगमसार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा कोइकनुं तप एहबुं नाम ते नाम तप तथा पुस्तकमां तपनी विधीनुं लेखन ते थापना तप अने पुण्यरूप मासखमणादिक करवो ते द्रव्य तप. जे परवस्तु ऊपर त्यागनो परिणाम ते भाव तप. एम संवरादिक सर्वमां चार चार निक्षेपा जाणवा. तथा श्री अनुयोगद्वार मध्ये कां छे-यतः " जत्थयजं जाणिज्जा, निख्खेवं निख्खिवे निरवसेसं ॥ जत्थवी य न जाणिज्जा, चक्कनिखिखवे तत्थ || १ | ए चार निक्षेपा का एटले शब्दनय को. ed as समभिरू नय कहे छे जे वस्तुना केटलाक गुण प्रगट्या छे अने केटलाक गुण प्रगट्या नथी पण अवश्य प्रगट हवी वस्तुने वस्तु कहे ते वस्तुना नामांतर एक करी जाणे. जेम जीव चेतन तथा आत्मा एहनो * एक अर्थ कहे ते समभिरूढ नय कहियें ए नय एक अंश ओछी वस्तुने पूरेपूरी वस्तु कहे जेम तेरमा गुणठाणे केवली होय तेहने सिद्ध कहे. ए नयना भेद बिलकुल नथी ए सममिरूढनय को. हवे एवंभूतनय कहे छे जे वस्तु पोताने गुणे संपूर्ण छे अने पोतानी क्रिया करे छे तेने ते वस्तु कही बोलावे. जेम मोक्षस्थानकें जे जीव पहोतो तेनें सिद्ध कहे. जेम पाणीथी भरेलो स्त्रीना माथा ऊपर आवतो जल धरण क्रिया करतो तेने घडो कहे. ए एवंभूतनय को. हवे सात नयना दृष्टान्त श्री अनुयोगद्वार सूत्रयी लखियें छैयें. जेम कोइक पुरुषे कोइक बीजा पुरुषने पुछ्युं जे तभे किहां वसोछो तेवारें ते पुरुषे कयुं हुं लोकमां वसुंछु तेवारें * एकार्थवाची नामोनां नामभेदे भिन्न भिन्न अर्थ करे छे तेने समभिनय कथे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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