SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 526
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. निज पर रूप पिछाके, शुद्ध बोध जिण लिद्धः वृद्ध ति केइज दाषव्या, सितकच थया न वृद्ध. वृद्ध ति के विषयादिके, जसु मानस न घलाय; शीलवंत आतमरुची, युवा वृद्ध ते थाय. कोई वृद्ध लोभीकके, ज्ञानी युवा मलीनः बूढापे तनु बल घटे, इंद्री विषय विहीन. वृद्ध वृत्तविण तरुण छे, तरुण चरणयुत वृद्धः वृद्ध सेव माता समीः हितं श्रुतकारी शुद्ध. कर्मयोग माता फिरे, पिण संत शिवसुष गेह संत वाणि जिण नवि लही, अंध अछे नर तेह. साधु संग अमृत थकी, वाधे वृक्ष विवेकः चित्त कमल बोधन रवी. संयमश्रीनी टेक. हाल -- हरिया मन लाग्यो एहनी. सेवो० १ वृद्ध सेवा जगतमें, तत्व न जाण्यो जाय रे; सेवो वृद्ध मणी ० वृद्ध सेव चारित सधे, सायर शशि करपाय रे. आशा अगनि गमाडिवा, वृद्ध सेव गुणराशी रे; क्रोधादि कमल अपहरे, वाधे चारित वास रे. विषय तृषा जांये मिटी, उत्तम संग पसाय रे ज्ञान भजे थिरता बढे, कातरता दुष जाय रे. सज्जन सेवाथी लहे, कुज्ञान सागर पार रे; तप श्रुत संयम ऊपरा, पीत बधे तसु सार रे. वज्र समो शुभ संग छे, भजन गिरि मिथ्यात रे:अज्ञपणो जाये सहू, न रहे तम तिलमात रे. ૨ ५०१ ३ से० सेवो० २ से० सेवो० ३ से० मेवो० ४ से० से० ५
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy