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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यानदीपिका चतुष्पदी. ४९५ देव दानव गति जे कहे रे, ते न कहे स्त्री भास रे; ए नारी ० ए नारी० ३ ए नारी ए नारी० ४ रे. भावी जे जाणे तिके रे, धाये स्त्रीनो दास रे. पोत चढी सायर तरे रे, दुत्तर स्त्री आचार रे; पिता पुत्र पतिने ठगे रे, संदेहे ए नारी रे. मीनथकी वनसिंहथी रे, चंचल छे स्त्री मन्न रे; मणि मंत्र को नहीं जिणथकी रे, वांक तजे स्त्री मन्न सुंदर पतिने मारिने रे, वांछे वस्थी भोग रे पुरुष अंक रमती थकी रे, चाहे वीयसुं योग रे, मंत्र विना नरने ठगे रे, नारी दुबनी गेह रे; अधम नीच जन जे हुवे रे, नारीने प्रिय तेहरे. सहस्र लक्ष योद्धा जिके रे, स्त्री आगल ते दीन रे; गुणवंत करिने मानिजे रे, अंते तु गुणहीन रे. रीस करे जी जी करयां रे, गुण ऊपरि दुधकारि अनाचार करी ढाकले रे, जग वंचक ए नारि रे. दाता भोक्ता पति भणी रे, मारे नारी साहि रे; विषयी जो अमृत हवे रे, तो स्त्री मन मल जाय वंध्या सुत नभपुष्प जो रे, थाये तो स्त्री शुद्धि रे; जाले दोनुं कुल भणीरे, जे मानव स्त्रीलुद्ध रे. निश्चल सुरगिरि सारषो रे, कंपावे स्त्री तेह रेह रोगी दुर्बल धन विना रे, छोडे पतिने एह रे; शूलीथी अधिकी कही रे, जनगन भेदन काज की कलंकी नारिये रे, क्षय वारी ग्रहराज रे. सूर भमे वली आयमेरे, संध्या नारी संगरे उदधि रहे नहीं योगयी रे, रोदन चपल तरंग रे. रे; रे. रे; For Private And Personal Use Only ए नारी० ए नारी० ५ ए नारी ० ए नारी० ६ रे; ए नारी - ए नारी० ७ ए नारी ० ए नारी० ८ ए नारी ० ए नारी० ९ ए नारी ० ए नारी० १० ए नारी ० ए नारी० ११ ए नारी ० ए नारी० १२ ए नारी० ए नारी० १३ ए नारी ० ए नारी० १४
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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