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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. सूर ते कायर थाय वृद्ध लघुता रहे, पंडित थाये मूढ कामवसि दुःष सहेः वनिताकाजे लाज बहुत कामी करे, केंद्रपहठयी सूर मरण रणमे वरे. उपेडण श्रमवृक्ष मदन गजसम अछे, प्रथम गमावे देह मरण पामे पछे; चोर करे जिम कोप भोर दिन उपरे, तिम ब्रह्मचारी देषी द्वेष कामी घरे. हरि हर ब्रह्मा देव इंणे मदने नड्या, छोडि आपणी लाज नारी पाये पढ्याः घडी मात्र पिण छेक विवेक रहे नही, लागा केंद्रप बाण प्राण तजस्ये सही. पामी नरनो देह एह केंद्रप दमो, छोडी विषय विकार सार निजगुण रमो; बलतो केंद्र ताप व्यापथी जग सुणी; छोडे विषयासंग व पंडित मुणी. मारी मानो मान ध्यान आतम धरो, पामो भवनो पार सार संयम वरो देवचंद नागेंद्र मदनवसि सह पड्या, दीठा बहुला दुःख के भवमे रडवड्या. महमाती ए कामिनी, जे जे साझ काज; तेहनो थोडो अंश पिए. कहि न सके कविराज. हृदय कुछ मुए मिः छे. ए नारी सहजे नीचः झाल यमदाढसम, दुःखदायक भववीच. ४१ For Private And Personal Use Only ४९३ ११ १२ १३ १४ १५ १ २
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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