SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यानदीपिकाचतुष्पदी. १२ चतुर० वंदनी त्रय जगने रे, बचे द्रव्य परिवार; सत्य वचनथी सुख लहे रे, सुचित्रादि अगगार. परकारण वच झूठे रे बोल्यां दें दुष लक्ष; असत्यवचनथी दुप या रे, वसुराजा परतक्ष. मानव दानव सुरपती रे, ग्रह खेचर जनपाल वंदे जिन ते पिण कहै रे, सत्य वचन व्रत पाल. १४ चतुर सत्यवचनथी सुख लहै रे, सत्य वचन सुवषाणि; १३ चतुर० सत्य वचन कहो प्राणिया रे, देवचंद्रनी वाणि. १५ चतुर० दूहा. तीज व्रत पाल्यां विना, शिवमग दुरगम होयः शिवनी इच्छा जो करो, मत ल्यौ परवन कोय. बाह्य माण धन जन तणा, दसे हण्या तसु प्राण; गुण विद्या जस सह गमे, चोरी दुषरी पाणि. परधन पर आमिष सभौ, ठीधां तप जस नासः गुरु बंधव माता पिता, करे न तसू वेसास. For Private And Personal Use Only }¢ १ ढाल - मया मोहि दक्षिणीआणि मिलाइ एहनी. पवन आमिष सारियो रे, दुष है पंनग जेम तलु वेसास न को करे रे, तो आदरीयै केम. चतुर नर परिहर चौरीसंग ॥ २. चतुर० चौरादी दुष ऊपजै रे, वलि होवै तौ मंग यात पिता सुत मिनी रेहन ह मानद डरतौ रहे रे, मृग जिम भवनो गेह. ३ च० षिण एक नींद करे नही रे, मरणथकी भयमंतः जो को मुझनै जागस्यै रे, तो करस्यै मुझ अंत ४० 62 १
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy