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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ छे केमके श्रीमश्नव्याकरणमां " वयणतियं लिंगतियं " इत्यादिक जाण्या विना अने नय निक्षेप जाण्या विना जे उपदेश आपे ते मृषावाद छे एम अनेक सूत्रमां कयुं छे माटे बहुश्रुत पासे उपदेश सांभलवो. श्री उत्तराध्ययन मध्ये बहुश्रुत ने मेरुनी तथा समुद्रनी अने कल्पवृक्षादि सोल उपमा दीघी छे ए द्रव्य निक्षेपो कद्यो. आगमसार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ′′ ४ भाव निक्षेपो कहे छे. जे नाम स्थापना अने द्रव्य ए त्रेण निक्षेपा ते एक भाव निक्षेपा विना अशुद्ध छे जे नाम तथा आकार लक्षण गुण सहित वस्तु ते भाव निक्षेपो जाणवो " उवओगो भाव " इति वचनात् एटले पूजा, दान, शील, तप, क्रिया, ज्ञान ए सर्व भावनिक्षेपे सहित लाभनुं कारण छे इहां कोइ कहेशे जे मनना परिणाम दृढ करीने जे करियें तेने भाव कहियें एम कहे छे ते जूठा छे ए तो सुखनी वांछायें मिथ्यात्वी पण घणा करे छे ते गणवुं नही. इहां सूत्रनी साखे वीतरागनी आज्ञा हेय उपादेयनी परीक्षा करी अजीवतत्व तथा आस्रवतच अने बन्धतव उपर हेय कहेतां त्याग भाव अने जीवना स्वगुण जे संवर निर्जरा तथा मोक्ष तत्व ऊपरें उपादेय परिणाम ते भाव कहिये एटले रूपीगुण ते द्रव्य निक्षेप छे अने अरूपीगुण ते भावनिक्षेप छे एटले मन वचन काया लेश्यादिक सर्व द्रव्य निक्षेपामां छे अने ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य ध्यान प्रमुख सर्व गुण भाव निक्षेपामां छे. ए भाव निक्षेपो ते नामस्थापना तथा द्रव्य सहित होय एटले चार निक्षेपा कह्या. हवे चार निक्षेपा पदार्थ ऊपर लगाडी देखाडे छे नाम जीव ते चेतना अथवा मांचाने एक वाणने जीव कही बोलावे For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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