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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानदीपिकाचतुष्पदी. कर्म मुक्ति संवर को, द्रव्यथकी मुनिरायः तजै कृपा संसारनी, संवरभाव कहाय. अविरतमय बाणे करी, मुनित्रत विभेदाप जेम सुभट संग्रामे, निजरिपुसाम्हो जाय. कर्मबंध आश्रव अछे, ते रुंधे मुनिदेव क्रोधादिकनै वारी, क्षांतादिक धर्म सेव. ढाल - बहिनी रहि न सकी तिसइजी. तजि मिथ्या समकित थकी जी, रागादिक समयोग; फोडे तम अज्ञाने जी, ज्ञान सूर्य उपयोग. १ विवेकी संवर भावना भाव. दूहा. कर्म गलै जिणथी सकल, जनम मरण अंकुर; मुनिवर भावै भावना, निर्जर नाम सनूर. ढाल - तेहीज. ४६५ क्रोधादिक रिपु भांजिवा जी, एहि ज उत्तम दाव. २ वि० सं० अविरत विष त्यागे मुनि जी, विरति सुधाकर पान काम अकाम दुभेदनी जी, कहि निर्जरा देवः कही सकाम मुनीसनें जी, निकांमेइ सहु जीव. भविकजन निर्जर भावन एह, 59 १३ For Private And Personal Use Only ३ जन्म न पांमे ते सही जी, द्वारक समज सुज्ञान. ३ वि० छोडे विकलप जानें जी, धारे मन चिद्रप ४ वि० तेह मुनीश्वर जाणीयै जी, संवर परम सरूप. मूल सुमति यम षंध छे जी, फूल धरम सम साथ सुंदर फल जसु भावना जी, जय संवस्तरु आप. ५. वि० ४ १
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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