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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ श्रीमद्देवचन्द्रकृतध्यानदीपिकाचतुष्पदी श्रीगुरुभ्यो नमः। परमज्योति प्रणमुं प्रगट, सहजानंद सरूप; वसतौ निज परिवारसू, प्रणमुं चेतन भूप. श्रीजिनवाणी मन धरि, पाय नमी गुरुराज सारबुद्धिदाता सकल, तारण भवीयण जहाज. २ परमातम समझाविवा, भविक जीव हित काज; ज्ञानसमुद्र अगाध गुण, देषाड्यो जिनराज. ३ संस्कृतवाणी वाचणी, केइक जाण जाण; ज्ञाता जननें हितभणी, भाषा करूं वषाण. गुणतां भणतां गावतां, टाली मन विषवाद, विकथा जांणी वारज्यो, मत को करो प्रमाद. ढाल चउपई. ज्ञान सोभ आलिंगन करी, आनंदित परमारथ वरी; प्रणमुं हूं अज सहज विचार, परमातम अव्यय गुणधार. १ तीन मूवन कमलाकर सूर, धरम अमृत वर जलधर पूरः । जोग ध्यान कल्पतरुहेव, प्रणमुं रिषभदेव नतदेव. २ भवभय वह्निथकी संभ्रांत, जंतु जातिने करवा सांता सुधासमान चंद्रप्रभुस्वामि, ज्ञानसमुद्र सोभानो ठामि. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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